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अतः सम्बत् १६११ का लेख जिस का जिकर श्रीमान् श्रीज्ञाजी साहब करते हैं वह भी श्वेताम्बरीय पाया जाता है । इन दोनो प्रन्थकर्त्ताने सम्वत् १४३१ वाले लेख का उल्लेख क्यों नहीं किया जिस का सबब हम नहीं बता सकते । अलबत्ता इन लेखों को बाबूसाहब पूर्णचन्दजीने निज के लेख संग्रह में प्रकाशित किये हैं। और इन्हीं दो लेखों के आधार पर The Imperial Gazetteer of India (New Editiou I908 ) में लिखा है जिस का बयान हम पृष्ठ ५ पर कर चुके हैं ।
पादुका प्रकरण में भी जो बयान किया गया है और शिलालेख दिये गये हैं वह देखने योग्य हैं। अलबत्ता श्रीमान् सिद्धचन्द्रजी भानचन्द्रजी के चरण जो मरुदेवीजी के हाथी के समीप स्थापित हैं उन का शिलालेख जिस की नकल हम को प्राप्त न हो सकी इस लिये नहीं दी गई। और ध्वजादण्ड प्रकरण में भी पाटीयों के लेख की नकल दी गई है। इस विषय में और खोजना की जाय तो ध्वजादण्ड चढाने के प्रमाण प्राप्त हो सकते हैं किन्तु पाटी उपर जो लेख रहता है वह लब्ध होना कठिन बात है; तथापि जो कुछ प्राप्त हुवा वह पाठकों के सामने है । और पूजा प्रकरण में जहां तक हो सका स्पष्टीकरण किया है, और प्राचीन पद्धति जो जैन धर्मानुसार अब तक चली आती है उस का उल्लेख है। जिस को पढने से व विधि-विधान इत्यादि पर लक्ष देने से मालूम होगा कि प्रचलित प्रथा व इस विषय के प्रमाण क्या बता रहे हैं ? इस के बाद परवाना प्रकरण को तो पूरा लिखा जाय तो