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________________ (९७ ) पंगत्या चढतां प्रायछित जावे, दरसणमें दिल होय राजी ।। रोग दोष सब जाय भाज के, गल जावे सब दुसमण पाजी ।।१०॥ अगडंब अगडंब बाजे नोवतां, झणण झणण झालर बाजे ॥ कीकडतां कीकडतां ताज झांझकर, धणणण धणणण घुघर बाजे।११॥ सीस भाल सिर छत्र बिराजे, ओर झलकत हे हीरकणी ॥ चामर छत्र सिर उपर ढुलत हे, प्रभुजी की शोभा अजब बनी॥१२॥ मुरग मृत्यु पाताललोकमें, सुरग लोकमें तुम चंदा ॥ सब देवन में आप बडा हो, आदिनाथ प्रभु आणंदा ॥ १३ ॥ देवल तो मजबूत बन्या हे, उपर इंडा सोनेका ॥ ओलुं दोलू कोट बनाया, सब सीगींद बंद चुनेका ॥ १४ ॥ सन्मुख हस्ती एक पटाजर, तीन की शोभा अब केहता ॥ रिखबदेव की मातपिता दोइ, ऐरावत उपर बेठा ॥ १५ ॥ दोनु बाजु हस्ती घुमे, जीनकुं ऐसे सिणगारे ॥ कंठ चरण और घुघर घमके, लागत हे सुंदर प्यारे ॥ १६ ॥ एक बात तो अजब तुमारी, हुं जाणुं तुं धन काला ॥ तेरा नाम से कटे बेडियां, और कटे लोह का ताला ॥ १७ ॥ मन सुध करके समरण करता, एक चित्त तुमकुं ध्यावे ॥ अन धन और माणक मोती, पुत्र कला लछमी पावे ॥ १८ ॥ भवसागर में आप तरे प्रभु, अब सेवगकुं तुम तारो ॥ मायाजाल में लिपट रह्यो छे, जीनसुं न हमिरो सारो ॥१६॥
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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