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जे मालावाला केसर वागा छोडावाला वहे असवार घणे थां न लीदी लाज करणो पड्यो एह काज दीठो नहे कामदेव हाथारो अजार भाषमा सहुको करे तसणे को हाड घरे कीडी पर कटकाइ, जगारा आधार इन्द्र चन्द्र सुरअवि सोनारे फुले वधावे गुणी जण मुलो गवि जपे जय जयकारज कलस जपे जीन जयकार थइ थीर सासन सोभा दीयो दीवाण धार धीर अल थानक थोभा आसोवद एकम आ साल त्रेसठ आव्यो जुध जीतया जीनराज ऋषभजी बदुसाकयो रापयो आवी बेठा आसने घुरे नीसाण कसर घणां मयारामसुत मुलो भणे जपे त्रिहुं लोक नाभीतणां ॥ इति श्रीधुलेव श्रीऋषभदेव छंद संपूर्ण ।
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नित्य क्रिया प्रतिक्रमण जो प्रातःकाल में किया जाता है उस में तीर्थों को नमस्कार करने के लिये तीर्थमाला बोली जाती है । और उस में देवलोक, तीछलोक के तीर्थों को नमस्कार करने बाद मनुष्यलोक के कुछ तीर्थों को नमस्कार करने में श्रीकेसरियाजी तीर्थ का भी नाम आता है, जिस का उल्लेख इस प्रकार है ।
संखेश्वर केसरियो सार, तारंगे श्री अजित जुहार || अंतरीक्ष वरकाणो पास, जीरावलो ने थम्भ पास ॥
इसतीर्थवन्दना को बनाये कितने साल हुवे इस का प्रमाण मेरे देखने में नही आया किन्तु सुना है कि करीब तीन