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________________ ( ९३ ) मोतीदाम || शरणे राख्या सुमत कियो जेह जुद्ध घणो ते शक दलरोदल भाख्यो तांही पोकार, जीप्या पादशाह हुबो जयकार, दयानिधि त्यांही देव के धरमी श्राव्या नयर धूलेव माणा भैरवनाथ तब रोशे भराणा ! ॥ दोहा ॥ भला भजाणी भेरवा, प्रजारा प्रतिपाल | साम धर्म सामी तणा, कासीरा कोटवाल उर तप धारा तेडवा, तारक त्रिभुवननाथ ॥ आगल जई उडा रह्या, हेते जोडी हाथ ॥ १ ॥ ॥ १ ॥ राज करी ऋषभ धणी, वली थाय वतिराग ॥ धगल प्रल हण धारशी, लेव धरणी री धाक ॥३॥ हार वायरीण तिद्द तणां ते तारी सारीइ झरीजनने । घोसी ससरण उगारइ, आदसेर भरिहंत अरज अवधारइ | ४ | ॥ दोहा ॥ सेवकने संकट पडे, वेलां हुइ विषम तीणी ॥ वेराई वारे चढ्यो, उसमा धणी ऋषभ परावस पुसालरी, प्रभुइ सुणी पोकार ॥ नीलु पलाणीयो, आप हुदा असवार बीजे ऊरीइगो मुखजी, बैठा दोय असवार सरी जगदीठा || भैरव तप धस्या बहु सीला, हठकर चढीया सवे हठीला ॥ ३ ॥ ॥ २ ॥ ॥ १ ॥
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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