________________
(८४ ) विविध प्रकारना. फूल लेइने, पूज्यो प्रथम जिनन्द ॥ पून्यां पातक सवि टले हो वली, होय तस घर आणंद ॥७२॥ अहनिस सुर सेव करे, हो अणहुती एक कोड ॥ गुण गावे प्रभुतणां हो, राय राणां दोय कर जोड ॥७३॥ भीमसाह मनभावसुं हो, पूजा रचे उदार ॥ चाल्या परवारसुं पूजवा हो, उलट अंग न माय ॥ ७४ ॥ करीब पखाल सोहामणो हो, आंगी रची उदार ॥ देखता सुर नर मन मोहे, पुनि भरी सुकृत भंडार ॥ ७५ ॥ प्रमुजीने पूजी भावसुं हो, श्राव्या मंडप आप ॥ सहगुरु पाय प्रणमी करी हो, करी धजा चडावारो थाप ॥७६॥ सहु संघ मिली करी हो, देइ परदषणा सार ॥ धजा चढावी देहरे हो, वरते तब जय जयकार ॥ ७७ ॥ ऋषभ जिनेसर पूजा करीने, अंगी रची उदार ॥ उलस उलस सहुं परवारसुं पूतां, सुहो पूजन सह परवार ॥७॥
॥ दोहा ।।
भोगी भमर ए भमडो, चतुर विद्यानो गेह ॥ भगवंत पूजी भावसुं, निरमल कीधी देह ॥ ७९ ॥ देव जूहारी देहरें, आव्या मंडप नाम ॥ संग नुहतरी सुभ परे, तली जुतरी गाम ॥ ८ ॥ देस देसना संघ मिली, आव्या भगवंत जात्र ॥ ते सहु को जीमाडने, पोषे वा पुन पात्र ॥ ८१ ॥