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( ८३) निवासीने एक स्तवन बनाया जिस में भी मन्दिर का बयान व विधीविधान का जिकर है।
(९) सम्वत् १८५९ में इडरगढ का संघ आया तब मुनि महाराज रुपविजयजीने एक लावनी बनाई, जिस में बावन जिनालय व मरुदेवीजी के हाथी का बयान है।
(१०) इसी अरसे में नाथूराम कविने एक लावनी बनाई जिस में पूजन का व आंगी वगैराह का बयान है, और अकबर बादशाह चढ कर आया जिस का भी उल्लेख है। ..
उपर बताये अनुसार लावनी, स्तवन, छंद देखने से भी श्वेताम्बरीय विधान का पता चलता है।
हवे संग मारग चालतां, पुंहता पुर धुलेव ॥ मनमा उलट उपनो, जय मेघा जिनदेव ॥६६ ॥
॥ ढाल काफी धमालीनी ॥ संग तिहां श्रावी उतर्यो हो डेरा दीधा चंग ॥ केसर चंदण घोलत रोलत, पूजत ऋषभ जिणंद ॥ ७० ॥ मनमोहन ऋषभजी भेटइंहो, केसर चंदण चंपक सबही ॥ मृगमद केरी पास मरुवो, मचकुंद मोगरो हो चंपकली
लाल गुलाल ॥ ७१ ॥ आकणी ॥