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इस तीर्थ का वर्णन भी है । लावनी तो बडी है अतः इस इतिहास में जो उपयोगी गाथा है सो देख लेवें ।
(३) सम्वत् १८९० के वर्ष में एक पुस्तक लिखी गई जिस में सम्वत् १७७३ में छारेडा के भोजा कवि का बनाया हुवा स्तवन छपा है सो भी जानने योग्य है सो नम्बर तीन में देखें ।
(४) इस के बाद या समकाल में ही मुनिराज श्रीगुणसुन्दरजीने श्रीकेसरियानाथ का अष्टक बनाया सो हम नम्बर चार में बतावेंगे |
(५) श्रीमान् हरिविजयसूरिजी महाराज के समय में एक स्तवन बना है जिस में अकबर बादशाह का व सूरिजी महाराज का नाम दिया है । अतः तीर्थों के पट्टेवाला वर्णन भी इस से और स्पष्ट होता है, और श्रीकेसरियानाथजी की स्तुति करते सूरिजी महाराज और बादशाह को भी रचना करनेवालेने याद किया है ।
(६) सम्वत् १७९७ में श्रीमान् भोजसागरजी महाराजने तीर्थ की महिमा का एक स्ववन बनाया सो भी जानने योग्य है
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(७) मूलचन्दजीने एक छंद बनाया जिस में भी बहुतसा वर्णन है ।
(८) सम्बत् १८६० में रोडजी गुरजी सलूम्बर (मेवाड ) -