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________________ ( ८१ ) सुबह-शाम अगियां धारण कराई जिस का वर्णन " भीमचौ पाई " जिस के कर्त्ता भट्टारकजी महाराज कीर्त्तिसागरसूरिजी के शिष्य हैं, और आपने इस चौपाई की रचना सम्वत् १७४२ में की जिस की एक प्रत सम्वत् १७४६ की लिखी हुई इस समय " श्रीविजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानमन्दिर ” आगरा में मौजूद है। चौपाई तो बडी है लेकिन तीर्थ धूलेव में आये और पूजन अर्चन किया जिस के वर्णनवाला भाग इस विषय में उपयोगी मालूम होने से पाठकों के सामने रखते हैं सो आगे नम्बर एक में देख लेवें । इस चौपाई में यह बात बतलाई गई है कि जिस समय सेठ भीमाजी पोरवाड आसपुर के रहनेवाले इस तीर्थ की यात्रा करने आये तब, और गांवों से भी यहां संघ आये हुवे थे । और सब श्वेताम्बर थे जिस कारण सब संघ - समुदाय को सेठ भीमाजीने भोजन कराया और इस तीर्थ पर ध्वजा ढाई एसा उल्लेख है । (२) इस के बाद सम्वत् १८६८ की बनाई हुइ लावनी जिस में सदाशिवरावने इस तीर्थ पर आक्रमण किया जिस का बयान है । सो पहले के प्रकरण में बता चुके हैं और इसी हकीकत को और स्पष्ट करते मुनिराज श्रीदीप विजयजीने एक लावनी सम्वत् १८७५ में करीब ८० गाथा की बनाई जिस में भी सदाशिवरावने आक्रमण किया जिस का उल्लेख है और
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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