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चला । सन् १८०६ के जूनमास में यह सेना मेवाड की ओर को बढी...वगैराह."
इस उल्लेख को स्पष्ट करते हुवे श्रीयुत् अोझाजी निज के बनाये हुवे " राजस्थान इतिहास ” में पृष्ठ २८६ पर लिखते हैं कि--
" इन मरहटोंने मुगल बादशाहों की अवनति के समय राजपूताने के राज्यों को हानि पहुंचाने में कुछ भी कसर न रखी । मुगलों के समय में तो राजपूत राज्यों की दशा खराब न हुइ, परंतु मरहटोंने तो उन को जर्जरित कर दिया और सब से अधिक हानि मेवाड ( उदयपुर राज्य ) को पहुंचाइ"
समय सदा एकसा नहीं रहता । धन के लोभी सदाशिवरावने निज के आपत्ति काल में औरों पर श्वापत्ति डालने की ठानली और वीर भूमि पर आक्रमण करते समय तीर्थ केसरि. याजी को भी नहीं छोडा ।
सदाशिवरावने जब इस मन्दिर पर चढाई की तब इस को एसा अनिष्ट न करने के लिये राजपूत सरदारोंने बहुत समझाया लेकिन धन की चाहनावाले सदाशिवने एक भी न मानी और मन्दिर पर आक्रमण कर ही दिया । जब सारी सेनाने मन्दिर को घेर लिया और तबाही मचने लगी एसे समय में नीले घोडे पर सवार व भील दल अद्रष्य स्थान से उमड भाये और सदाशिवराव की सारी सेना पर एक दम धावा