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________________ (७४ ) बोल दिया, और एसा जबरदस्त आक्रमण किया कि सदाशिवराव की सारी सेना में तबाही मच गई और तमाम सेनिक भाग गये । और इस सेना में जो नोबत-नकारा जो फोज के साथ का था वह भी सेनिक न लेजासके और वह वहीं रह गया, जो अब तक तीर्थ केसरियाजी में पड़ा है । इस सारी कथा का वर्णन मूलचन्दजीने एक लावनी सम्वत् १८६८ में बनाई जिस में इस प्रकार बयान किया है । ॥ केसरियानाथ की लावणी ।। सुणजो बातां राव सदाशिव, मत चढ जाना धूलेवा ॥ गढपति उन का बडा भटंका, मत छेडो तुम उन देवा ॥आंकणी॥ सकतावत चुण्डावत बोले, हम ही नोकर उनहीं का ॥ हीन्दुपति वांकु हाथ जोडे, तीन भुवन शिर हे टीका ॥ १ ॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल सबे ही, सुरनर वाकुं ध्यावत है ॥ इन्द्र चन्द्र मुनि दर्शन श्रावे, मन की मोजां पावत है ॥ २ ॥ गया राज उन्ही से आवे, निरधनिया कुं धन देवे ॥ बांझ खिलावे सुन्दर लडका, सदा सुखी जे प्रभु सेवे ॥ ३ ॥ तारे जहाज समुद्र में जइने, रोग निवारे भव भव का ॥ भूप भूजङ्गम हरिकरि नदियां, चोरन बन्धन झर दव का ॥ ४ ॥ घों घों घों घों घोंसा बाजे, दसों दिसा में हे डंका ॥ भाउ तांतिया नहीं भलाई, मत बतलावो गढ बंका ॥ ५ ॥ रानाजी के उमराव का, मानत नाही ये बातां ॥ थारा किया थेहीज पावो, मैं नही आईं थां साथां ॥ ६॥
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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