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________________ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज जंगल में छिपकर बैठ गया और राज्य सैन्य के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा। दोनों ओर से डटकर मुकाबला हुआ और अन्त में राजा की सेना हारकर भाग गयी । ७८ दण्डनायक ने नगर में लौटकर राजा से निवेदन किया कि महाराज, चोर-सेनापति को चतुरंग सैन्य बल से नहीं जीता जा सकता, उसे तो शाम, दाम अथवा भेद के द्वारा किसी भी तरह विश्वास में लेकर पराजित करना होगा । यह बात राजा की समझ में आ गयी । उसने एक बड़ी कूटागार - शाला का निर्माण कराया, और दस दिन तक राज्य भर में आमोदप्रमोद मनाने की घोषणा की। इस अवसर पर अभग्ग सेण को भी आमंत्रित किया गया । अभग्ग सेण राजा के लिए बहुमूल्य भेंट लेकर उपस्थित हुआ । राजा ने उसे सम्मानपूर्वक अपनी कूटागारशाला में ठहराया तथा उसके लिए विपुल अशन, पान, सुरा आदि का प्रबन्ध किया । चोर-सेनापति मद्य-मांस आदि का सेवन करता हुआ जब प्रमत्त भाव से समय यापन कर रहा था तो राजा ने उसे धोखे से गिरफ्तार कराकर शूली पर चढ़ा दिया ।" I अपनी निर्दयता और कूरता के लिए प्रसिद्ध थे। चोरों के भय से लोग रास्ता चलना बन्द कर देते और मुख्य-मुख्य रास्तों पर पुलिस का पहरा लग जाता । एक बार, किसी ब्राह्मणो के घर चोर आये । ब्राह्मणी अपने हाथों और पैरों में आभूषण पहने हुए थी । जब चोर आभूषणों को न निकाल सके तो वे ब्राह्मणी के हाथ-पैर काटकर चलते बने।' चोरी के माल का पता लग जाने के भय से अपने प्रिय कुटुम्बीजनों तक को मौत के घाट उतारने में वे नहीं हिचकते थे । कोई चोर अपने घर में कूप खोदकर उसमें चोरी का धन भर दिया करता था। लेकिन उसे इस बात की सदा आशंका बनी रहती कि कहीं उसकी स्त्रो और उसका पुत्र कूप का भेद न खोल दें। इस आशंका से उसने अपनी स्त्री को मारकर कूप में डाल दिया । यह देखकर उसके पुत्र ने शोर मचा दिया और चोर पकड़ लिया गया । १. विपाकसूत्र ३, पृ० २४-२८ । २. बृहत्कल्पभाष्य १.२७७५ । ३. उत्तराध्ययनचूर्णी, पृ० १२४ | ४. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ८० - ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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