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________________ ७६ तीसरा अध्याय : अपराध और दण्ड चोर जैन साधुओं के उपाश्रय में घुस जाते और रत्नकम्बल (बहुमूल्य कम्बल) आदि के लोभ से उन्हें जान से मार डालने की धमकी देते। संघ के आचार्य को पकड़कर वे परेशान करते ।' आर्यिकाओं और क्षुल्लकों को उठाकर भी वे ले जाते ।। स्त्री-पुरुषों का अपहरण वे कर लेते। एक बार उज्जैनी के किसी सागर के पुत्र का हरण कर चोरों ने उसे एक रसोइये के हाथ बेच दिया। मालवा के बोधिक चोर प्रसिद्ध थे; वे मालव पर्वत पर रहते थे। चोरों के पाख्यान बेन्यातट नगर में मण्डित नाम का कोई चोर रहा करता था । रात को वह चोरो करता और दिन में दर्जी (तुन्नाग) का काम करके अपनो आजीविका चलाता। मण्डित अपनी बहन के साथ किसी उद्यान के भूमिगृह में रहा करता। इस भूमिगृह में एक कुआँ था। जो कोई व्यक्ति चोरी का माल ढोकर यहाँ लाता, उसे पहले तो मंडित की बहन आसन पर बैठाकर उसका पाद-प्रक्षालन करती और फिर उसे कुएँ में ढकेल देतो। ___ मूलदेव जब राजा बन गया तो उसने मण्डित चोर को पकड़ने का बहुत प्रयत्न किया, परन्तु उसका पता न चला। एक दिन मलदेव नीलवस्त्र धारण कर चोर को खोज में निकला। वह एक स्थान पर छिप कर बैठ गया। थोड़ी देर बाद जब वहाँ मण्डित आया तो पछे जाने पर मूलदेव ने अपने आपको कापालिक भिक्षु बताया । मण्डित ने कहा, चल मैं तुझे आदमी बना दूं। मूलदेव उसके पीछे-पीछे चल दिया । मण्डित ने किसी घर में सेंध लगाकर चोरी की और चोरी का माल मूलदेव के सिर पर रख कर वह उसे अपने घर लिवा लाया। मण्डित ने अपनी बहन को बुलाकर अतिथि के पाद-प्रक्षालन करने को कहा। लेकिन मण्डित की बहन को मूलदव के ऊपर दया आ गयी १. बृहत्कल्पभाष्य ४. ३६०४, १.८५०-३; निशीथचूर्णी २.६७१. की चूर्णी । २. व्यवहारभाष्य ७, पृ० ७१-अ। --.. ३. उत्तराध्ययनचूर्णी, पृ० १७४ । ४. निशीथभाष्य २.३३५ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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