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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज
और उसने उसे कुएँ में न ढकेल, भाग जाने का इशारा कर दिया ।
मूलदेव भाग कर एक शिवलिंग के पीछे छिप गया । मण्डित ने अँधेरे में शिवलिंग को चोर समझकर तलवार से उसके दो टुकड़े कर डाले । प्रातःकाल होने पर मण्डित रोज की भाँति राजमार्ग पर बैठकर दर्जी का काम करने लगा । मूलदेव ने मण्डित को राजदरबार में बुलवाया। मंडित समझ गया कि रात वाला भिक्षु और कोई नहीं, राजा मूलदेव था । मूलदेव ने मण्डित की बहन से शादी करके बहुतसाधन प्राप्त किया और फिर मण्डित को शूली पर चढ़वा कर मार डाला ।"
भुजंगम बनारस का रहनेवाला एक शक्तिशाली चोर था । एक बार बनारस की प्रजा ने राजा से शिकायत की कि चोरों ने नगर - वासियों को बहुत परेशान कर रक्खा है । यह सुनकर राजा ने नगररक्षकों को बुलाकर बहुत डांटा । उस समय वहाँ शंखपुर का राज - कुमार अगदत्त मौजूद था। उसने सात दिन के अन्दर अन्दर चोर का पता लगाने का प्रण किया ।
अगडदत्त वेश्यालयों, पानागारों, द्यूतगृहों, बाजारों, उद्यानों, मठों, मन्दिरों और चौराहों पर चोर की खोज करता फिरने लगा । एक दिन अगडदत्त अत्यन्त निराशभाव से बैठा हुआ था कि इतने में उसे कोई परिव्राजक दिखाई दिया । परिव्राजक ने गेरुए वस्त्र पहन रक्खे थे, सिर उसका मुण्डा हुआ था तथा त्रिदण्ड, कुण्डी, चमर और माला उसके हाथ में थी। उसका रूप-रंग देखकर अगडदत्त को उस पर सन्देह हुआ। परिव्राजक के पूछने पर राजकुमार ने उत्तर दिया कि वह एक दरिद्र पुरुष है और धन की खोज में इधर-उधर घूम रहा है । परिव्राजक ने कहा- चल मैं तेरा दारिद्र्य दूर करूँ ।
रात के समय परिव्राजक अपनी तलवार खींचकर चोरी के लिए चल दिया । किसी धनी वणिक् के घर उसने सेंध लगायी, फिर टोकरियों में भर-भर कर धन इकट्ठा किया । परिव्राजक अगडदत्त से धन की टोकरियां उठवाकर अपने घर की ओर चला । इस बीच में
१. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ६५ । २. वही, ४, पृ० ८६ |