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________________ तीसरा अध्याय : अपराध और दण्ड ७७ विद्या का आह्वान कर किवाड़ खोले । चिलात ने घोषणा की कि वह धन्य के घर डाका डालने आया है, जो कोई माई का लाल नयो मां का दूध पीने की इच्छा रखता हो वह सामने आथे । डाकुओं की यह घोषणा सुनकर धन्य अपने पांचों पुत्रों को साथ ले, घर से निकल भागा; केवल उसकी कन्या सुंसुमा वहीं छूट गयी। डाकू प्रचुर धन और सुंसुमा को लेकर भाग गये। धन्य ने नगर-रक्षकों के पास पहुँच उनसे चोरों का पता लगाने का अनुरोध किया। नगर-रक्षक अपने दल-बल और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हो चोरपल्ली की ओर रवाना हुए। चोरपल्ली को उन्होंने चारों ओर से घेर लिया। यह देख चोर सब धन-सम्पत्ति वहीं छोड़कर भाग गये, और चिलात सुंसुमा को लेकर जंगल की ओर चला । धन्य और उसके पुत्रों ने चिलात का पीछा किया और उसके पद-चिह्नों का अनुगमन कर वे उसके पीछे-पीछे चले। चिलात जब सुसमा को लेकर अधिक दूर न जा सका तो उसने अपनी तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। तत्पश्चात् तृषा से व्याकुल हो वह मार्ग भ्रष्ट हो गया, और चोरपल्लो पहुँचने के पूर्व ही उसके प्राणों का अन्त हो गया। ___ चोर आसानी से पकड़ में नहीं आते थे, और राजा की सेना तक उनसे हार कर भाग जाती थी। पुरिमताल नगर के उत्तर-पूर्व में अभग्गसेण नाम का एक चोर-सेनापति रहता था। वह आसपास के जनपदों में लूटमार कर लोगों को बहुत कष्ट पहुँचाता। एक दिन पुरिमताल की प्रजा राजा महाबल की सेवा में योग्य भेंट लेकर उपस्थित हुई, और उसने शालाटवी के चोर-सेनापति अभग्गसेण के लोमहर्षक अत्याचारों का वर्णन किया । राजा ने तुरन्त ही अपने दण्डनायक को बलाया और अभग्गसेण को जीवित पकड़ लाने का हुक्म दिया। * राजा को आज्ञा पाकर दण्डनायक अपने दल-बल सहित शालाटवी की ओर रवाना हुआ। लेकिन अभग्गसेण को अपने गुप्तचरों द्वारा इस अभियान का पता पहले ही लग चुका था । चोर-सेनापति अशनपान आदि विपुल सामग्री के साथ अपने चोरों को लेकर एक घने १. वही. १८, पृ० २०८-२१२ ! २. महावीर भगवान् के पुरिमताल में रहते समय ही विपाकसूत्र में वर्णित अभग्गसेण चोर-सेनापति की घटना घटित हुई, तन्दुलवैचारिक टीका, पृ० २ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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