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________________ ७६ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज .. चोर के पदचिह्नों का अनुगमन करते हुए जंगल में आये जहाँ चोरसेनापति छिपा हुआ बैठा था। उन्होंने उसे ग्रोवा-बन्धन से पकड़ लिया तथा हड्डी, चूंसों और लातों से उसको खूब मरम्मत की और उसको मुश्क बाँध ली। ___चोर-सेनापति को वे नगर में ले आये तथा चौराहों और महापथों पर उसे कोड़ों आदि से मारते-पीटते और उसके ऊपर खार, धूल और और कूड़ा-कचरा फेंकते हुए, जोर-जोर से घोषणा करने लगे-“यह चोर गृध्र की भाँति मांसभक्षी और बालघातक है। यदि कोई राजा, राजपुत्र या राजमन्त्री इस तरह का अपराध करेगा तो उसे अपने किये का फल भोगना होगा।" इसके बाद चोर को कारागृह में डाल दिया गया, जहाँ वह कष्टमय जीवन बिताने लगा। . कुछ दिनों बाद धन्य सार्थवाह का दासचेट चिलात अपने मालिक को छोड़कर चला गया और राजगृह की सिंहगुहा नामक चोरपल्ली में पहुँच, विजय चोर-सेनापति का अंगरक्षक बन गया । चिलात हाथ में तलवार लिए विजय की रक्षा किया करता, तथा जब वह लूटपाट के लिए बाहर जाता, तो वह चोरपल्ली की देखभाल करता । विजय ने चिलात से प्रसन्न हो उसे चोरमंत्र, चोरविद्या और चोरमाया आदि को शिक्षा देकर चोरकर्म में निष्णात कर दिया था। कालान्तर में विजय की मृत्यु हो जाने पर सब चोरों ने एकत्रित हो बड़ी धूमधाम से चिलात को सेनापति के पद पर अभिषिक्त किया। चिलात राजगृह के दक्षिण-पूर्व में स्थित जनपदों को लूटता-पाटता समय यापन करने लगा । एक दिन उसने चोरपल्ली के ५०० चोरों का विपुल अशन, पान और सुरा आदि द्वारा सत्कार कर, उनके समक्ष धन्य के घर डाका डालने का प्रस्ताव रक्खा । सेनापति की आज्ञा पाकर चोर गोमुखी, तलवार धनुष-बाण और तूणीर आदि से सज्जित हो, आई चर्म पहन, अपनो जंघाओं में घंटियां बांध, बाजे-गाजे के साथ चोरपल्ली से रवाना हुए। कुछ दूर चलकर वे एक जंगल में छिपकर बैठ गये । फिर आधी रात होने पर उन्होंने राजगृह में स्थित धन्य के घर धावा बोल दिया। पानी की मशक (उदकबस्ति) में से पानी लेकर उन्होंने किवाड़ों पर छींटे दिये, फिर तालोद्घाटिनी १. ज्ञातृधर्मकथा २, पृ० ४७-५४ । ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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