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________________ ७२ - जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज 1 अपहरण करने वाले ), ग्रन्थिभेदक और तस्कर नाम के चोरों का उल्लेख है ।' अन्यत्र आक्रान्त, प्राकृतिक, ग्रामस्तेन, देशस्तेन, अन्तरस्तेन, अध्वानस्तेन और खेतों को खनन करनेवाले चोरों का उल्लेख किया गया है। चोर बड़े साहसी और निर्भीक होते, तथा जो भी सामने आता, उसे मार डालते । वे राजा के अपकारी, जङ्गल, गांव, नगर, पथ और गृह आदि के विध्वंस कर्ता, जहाजों को लूट लेने वाले, यात्रियों का धन अपहरण करने वाले, जुआरी, जबर्दस्ती कर वसूल करने वाले, स्त्री के वेष में चोरी करने वाले, सेंध लगाने वाले, गंठकतरे, गाय घोड़ा, दास-दासी, बालक और साध्वियों का अपहरण करने वाले तथा सार्थ को मार डालने वाले हुआ करते थे । चोर विकाल में गमन करते, किंचित् दग्ध मृत कलेवर, अथवा जङ्गली जानवरों का मांस या कन्दमूल भक्षण किया करते । चोरी करने वाले को ही नहीं; बल्कि चोरी की सलाह देनेवाले, चोरी का भेद जानने वाले, चुराई हुई वस्तु को कम मूल्य में खरीदने वाले, चोर को अन्न-पान या और किसी प्रकार का आश्रय देनेवाले को भी चोर कहा है।' चोर में विश्वास की १. ६.२८ । अंगुत्तरनिकाय २, ४, पृ० १२७ में अग्नि, उदक, राज और चोरभय का उल्लेख है । २. निशीथ भाष्य २१.३६५० । ३. ज्ञातृधर्मकथा, १८, पृ० २०६ । बृहत्कल्पभाष्य ३.३६०३ इत्यादि । बौद्ध जातकों में ऐसे चोरों का उल्लेख है जो चोरी का धन गरीबों में बाँट देते और लोगों का कर्ज चुका देते । पेसनक ( प्रेोषणक = संदेशा भेजने वाले ) चौर पिता-पुत्र दोनों को बन्दी बनाकर रखते, तथा पिता से धन प्राप्त होने के पश्चात् ही पुत्र को छोड़ते ( पानीय जातक ४५६, पृ० ३१५ ) । उद्यान- पोषक चोर श्रावस्ती के उद्यान में घूमते-फिरते थे । उद्यान में किसी सोते हुए व्यक्ति को देखकर वे उसे ठोकर मारते । यदि ठोकर लगने पर वह सोया रहता तो वे उसे लूट लेते; दिव्यावदान, पृ० १७५; महावग्ग १.३३.६१, पृ० ७८ में ध्वजाबद्ध चोरों का उल्लेख है । तथा देखिए बी० सी० लाहा, इण्डिया डिस्क्राइब्ड इन अली टैक्स्ट्स ब्रॉव बुद्धिज्म एण्ड ज़ैनिज्म, पृ० १७२ इत्यादि । ४. चौर: चौरार्थको मन्त्री भेदज्ञः काणकत्रयी । अन्नदः स्थानदश्चैव चौरः सप्तविधः स्मृतः ॥ - प्रश्नव्याकरणटीका ३, १२ ५० ५३ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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