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________________ तीसरा अध्याय : अपराध और दण्ड ७१ ब्राह्मणों ग्रन्थों में स्कन्द ( कुमार कार्तिकेय ) को चोरों का देवता और चोरों को स्कन्दपुत्र कहा गया है। मृच्छकटिक ( ३, पृ० ७३ ) में शर्विलक ने अपने आपको कनकशक्ति, भास्करनन्दि और योगाचार्य का प्रथम शिष्य माना है। इन आचार्यों की कृपा से ही शर्विलक ने योगरोचना नामक सिद्ध-अंजन प्राप्त किया था जिससे वह अदृश्य हो सकता था । रात्रि के समय जब चोर चोरो के लिये प्रस्थान करते तो वे अपने इष्टदेवता खरपट,' प्रजापति, सर्वसिद्ध, बलि, शंबर, महा. काल और कत्यायनी ( कुमार कार्तिकेय की माता) का स्मरण करते। चोरों के प्रकार उत्तराध्ययन सूत्र में आमोष, लोमहर (जान से मारकर सर्वस्व भोजदेव की शृङ्गारमंजरी में कहा है कि मूलदेव अत्यन्त लप्पट ओर मायाचारी था तथा बड़े-बड़े चतुर पुरुषों और धूर्ती को ठगता हुआ वह उज्जैनी में निवास करता था । स्त्रियों के प्रति अत्यन्त शंकाशील होने के कारण वह विवाह नहीं करता था। एक दिन राजा विक्रमादित्य ने विवाह करने के लिए उससे बहुत प्राग्रह किया । मलदेव ने उत्तर में कहा-"महाराज ! स्त्रियाँ अत्यन्त कठिनता से प्रसन्न होती हैं, उनका श्राशय स्पष्ट नहीं जाना जा सकता, उनका स्वभाव चंचल होता है, कठिनाई से उनकी रक्षा की जा सकती है, क्षणभर में उन्हें वैराग्य हो जाता है और नीच पुरुषों का वे अनुगमन करती हैं।" लेकिन राजा ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए उन्हें यश, धन और संतान श्रादि का साधन बताया । अंत में राजा के अत्यंत श्राग्रह करने पर मलदेव ने विवाह कर लिया। लेकिन कुछ समय बाद मूलदेव की स्त्री किसी दूसरे से प्रेम करने लगी। इतना ही नहीं, स्वयं राजा विक्रमादित्य की रानी का राजा के महावत से प्रेम हो गया। तथा देखिये क्षेमेन्द्र, बृहत्कथामंजरी ( विषमशील में मूलदेव की कथा, पृ० ४३२); दण्डी, दशकुमारचरित, दूसरा उच्छवास; बाण, कादम्बरी; दीघनिकाय अट्ठकथा, १.८६ । १. मत्तविलासप्रहसन (पृ० १५) में खरपट को चोरशास्त्र का प्रणेता. कहा गया है (खरपटायेति वक्तव्यं येन चौरशास्त्रं प्रणीतं)। इसकी ग्रीस के देवता मर्करी ओर इंगलैण्ड के सेण्ट निकोलस के साथ तुलना कीजिए, राधागोविंद बसक, इण्डियन हिस्टोरिकल क्वाटी, ५, १६२६, पृ० ३१२ इत्यादि । २. देखिए भास, चारुदत्त ( ३, पृ०-५६ ); अविमारक ( ३, पृ० ४६ ); ब्लूमफील्ड, द आर्ट ऑव स्टीलिंग, अमेरिकन जर्नल ऑव फाइलोलोजी, जिल्द ४४, पृ०६८-६।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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