SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीसरा अध्याय अपराध और res चौरकर्म चौरकर्म एक महत्वपूर्ण विद्या थी । इसे तस्करमार्ग भी कहा गया है । चोरशास्त्र, स्तेयशास्त्र अथवा स्तेयसूत्र इस विषय के प्रमुख ग्रंथ थे, जिनमें अवश्य ही चोरी करने की विधि का उल्लेख रहा होगा । मूलदेव जिसे मूलभद्र, मूलश्री, कलांकुर, कर्णिसुत, गोणिपुत्रक अथवा गोणिकसुत आदि नामों से उल्लिखित किया गया है, स्तेयशास्त्र का प्रवर्तक था ' मूलदेव लोकविख्यात, वैभवशाली, अत्यन्त मायावी, समस्त कलाओं में पारंगत, वंचक, प्रतारक और धूर्तशिरोमणि के रूप में चित्रित किया गया है । कन्डरीक (कंदलि), एलाषाढ़, शश और खण्डपाणा आदि उसकी मण्डली के मुख्य सदस्य थे जो बैठकर गप्पाष्टकें लड़ाया करते थे । १. देखिए कथासरित्सागर ( जिल्द २, पृ० १८३ - ४ ) में 'नोट ऑन स्टीलिंग ।' २. संघदासगणि के निशीथभाष्य और हरिभद्रसूरि के धूर्ताख्यान में मूलदेव, कण्डरीक. एलाषाढ़, शश और खण्डपाणा नाम के पाँच धूर्तों का उल्लेख है । हरिभद्र के उपदेशपद में मूलदेव और कण्डरीक, और बैलगाड़ी में अपनी पत्नी के साथ बैठकर जाते हुए एक तरुण की मनोरंजक कथा श्राती है । क्षेमेन्द्र के कलाविलास में मूलदेव को अत्यन्त मायावी और समस्त कलाओं में पारंगत धूर्तराज कहा है। एक बार कोई सार्थवाह अपने पुत्र को धूर्तविद्या की शिक्षा देने के लिए मूलदेव के घर लाया । मूलदेव उस समय कंदल आदि अपने शिष्यों के साथ बैठा हुआ था । सार्थवाह का पुत्र भी वहाँ बैठ गया । मूलदेव ने दम्भ का विवेचन करते हुए कहा - " दम्भ निधान का कुम्भ है । हरिणरूपी भोले-भाले प्राणी इसमें फँस जाते हैं । जैसे जल में मछली की गति जानना कठिन है, वैसे ही दम्भ की गति भी नहीं जानी जाती । ऐसे मन्त्र के बल से सर्प, कूटयन्त्र से हरिण और जाल से पक्षी पकड़ लिये जाते हैं, वैसे ही दंभ से मनुष्य पकड़े जाते हैं । माया दंभ का स्तम्भ है ।" ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy