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दूसरा अध्याय : न्याय-व्यवस्था
व्यवस्था के कठोर नियम रहते हुए भी, न्यायकर्ता राजा बड़े निरंकुश होते और उनके निर्णय निर्दोष न होते । साधारण-सा अपराध हो जाने पर भी अपराधी को कठोर से कठोर दण्ड दिया जाता। अनेक बार तो निरपराधियों को दण्ड दिया जाता और अपराधी छूट जाते।'
- मुकदमे चोरी, डकैती, परदार-गमन, हत्या और राजा की आज्ञा का उल्लंघन आदि अपराध करने वालों को राजकुल (राउल ) में उपस्थित किया जाता । कोई मुकदमा (व्यवहार ) लेकर न्यायालय में जाता, तो उससे तीन बार वही बात पूछी जाती; यदि वह तीनों बार एक ही जैसा उत्तर देता तो उसकी सच्ची बात मान ली जाती। ___ एक बार दो सौतों के बीच झगड़ा हो गया । एक सौत षुत्रवती थी, दूसरी के पुत्र नहीं था। जिसके पुत्र नहीं था, वह 'पुत्रवाली सौत के लड़के को बड़े लाड़-चाव से रखती। धीरे-धीरे वह लड़का अपनी सौतेली मां से इतना हिल गया कि वह उसी के पास रहने लगा। एक दिन लड़के को लेकर दोनों में लड़ाई हो गयी। दोनों ही लड़के को अपना बताने लगी। जब कोई फैसला न हो सका तो वे न्यायाधीश के पास गयो । न्यायाधीश ने लड़के के दो टुकड़े कर दोनों सौतों को
१. उत्तराध्ययन ६.३० । जातक (४, प० २८) में किसी निरपराध संन्यासी को शूली पर लटकाने का उल्लेख मिलता है। मृच्छकटिक के चारुदत्त को भी बिना अपराध के ही दण्ड दिया गया था। इसीलिए कौटिल्य ने कहा है कि राजा को उचित दण्ड देनेवाला ( यथार्हदण्डः ) होना चाहिए, अर्थशास्त्र १.४.१३ ।
२. मनुस्मृति (८.४-७) में निम्नलिखित मुकदमों का उल्लेख है:ऋण का मांगना, अपना धन दूसरे के पास रखना, बिना मालिक के माल बिक्री कर देना, साझे में व्यापार करना, दान दिये हुए धन को वापिस लेना, वेतन का न देना, इकरारनामे को न मानना, किसी वस्तु का क्रय अथवा विक्रय कर उसे रद्द कर देना, पशुओं के मालिक और पशुओं के पालक में विवाद होना, सीमा सम्बन्धी विवाद, दण्ड द्वारा ताडन, वचन की कठोरता, धन की चोरी, जबर्दस्ती धन का अपहरण, किसी स्त्री के साथ परपुरुष का सम्बन्ध, स्त्री-पुरुष के कर्तव्य, पैतृक धन का विभाग, द्यूतक्रीड़ा में दांव ।
३, निशीथचूर्णी २०, पृ० ३०५ । - ५ जै० भा०