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________________ पहला अध्याय : केन्द्रीय शासन व्यवस्था ६१ आन्तरिक उपद्रवों और बाह्य आक्रमणों से राज्य की रक्षा करने के लिए मंत्रीगण गुप्तचरों को धन आदि देकर नियुक्त करते । सूचक अन्तःपुर के रक्षकों साथ मैत्री करके अन्तःपुर के रहस्यों का पता लगाते, अनुसूचक नगर के परदेशी गुप्तचरों की तलाश में रहते, प्रतिसूचक नगर के द्वार पर बैठकर दर्जी आदि का छोटा-मोटा काम करते हुए दुश्मन की घात में रहते, तथा सर्वसूचक, सूचक, अनुसूचक और प्रतिसूचक से सब समाचार प्राप्त कर अमात्य से निवेदन करते । ये गुप्तचर कभी पुरुषों और कभी महिलाओं के रूप में सामन्त राज्यों और सामन्त नगरों तथा अपने राज्य, अपने नगरों और राजा के अन्तःपुर में गुप्त रहस्यों का पता लगाने के लिए घूमते रहते । ' राजा के प्रधान पुरुषों में मंत्री का स्थान सबसे महत्व का है । वह जैसे भी हो, शत्रु को पराजित कर, राज्य की रक्षा के लिए सतत प्रयत्न - शील रहता । कभी कूटनीति से राजा मंत्री को झूठ-मूठ ही सभासदों के सामने अपमानित कर राज्य से निकाल देता । यह मंत्री विपक्षी राजा से जा मिलता, फिर वहां शनैः-शनैः उसका विश्वास प्राप्त कर, उसे पराजित करके ही लौटता । भृगुकच्छ के राजा नहपान और प्रतिष्ठान के राजा शालिवाहन दोनों में नोंक-झोंक चला करती थी । नहपान के पास माल - खजाना बहुत था और शालिवाहन के पास सेना | एक बार, शालिवाहन ने नहपान की नगरी पर आक्रमण कर उसे चारों ओर से घेर लिया । लेकिन नहपान ने ऐसे अवसर पर अपने खजाने के द्वार खोल दिये। जो सिपाही शत्रु के सैनिकों का सिर काट कर लाता, उसे वह मालामाल कर देता । इससे शालिवाहन के सैनिकों को बहुत क्षति उठानी पड़ी; और वह हार कर लौट गया । इस तरह कई वर्ष तक होता रहा । एक दिन शालिवाहन ने अपने मंत्री से लड़भिड़कर उसे देश से निकाल दिया । मंत्री भृगुकच्छ पहुँच कर नहपान से मिल गया । धीरे-धीरे राजा का विश्वास प्राप्त कर वह मंत्री के पद पर आसीन हो गया । वहां रहते हुए उसने स्तूप, तालाब, वापी, देवकुल आदि के निर्माण में नहपान का अधिकांश धन लगवा दिया, और जो १. व्यवहारभाष्य १, पृ० १३० - इत्यादि । महाभारत (शान्तिपर्व ६८०. १२) में गुप्तचरों की नियुक्ति राजा का प्रमुख कर्त्तव्य माना गया है। उन्हें नगरों, प्रान्तों और सामन्त प्रदेशों में नियुक्त करने का विधान है ! तथा देखिए अर्थशास्त्र १. ११-१२. ७-८ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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