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________________ ६२ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज बचा उससे रानियों के आभूषण बनवा दिये । इस प्रकार सारा माल - खजाना खाली हो जाने के बाद उसने शालिवाहन के पास खबर भिजवा दो । शालिवाहन सेना लेकर चढ़ आया और नहपान हार गया । ' व्यवहार और नीति के कामों में सलाह-मश्विरा लेने के लिए जैसे राजा को मंत्री को आवश्यकता होती, वैसे हो धार्मिक कार्यों में पुरोहित को होती । विपाकसूत्र में जितशत्र राजा के महेश्वरदत्त नामक पुरोहित का उल्लेख है जो राज्योपद्रव शान्त करने, राज्य और बल का विस्तार करने और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए अष्टमी और चतुर्दशी आदि तिथियों में नवजात शिशुओं के हृदयपिण्ड से शान्तिहोम किया करता था । श्रेष्ठो ( णिगमारक्खिअ = नगर सेठ) अठारह प्रकार की प्रजा का रक्षक कहलाता । राजा द्वारा मान्य होने के कारण उसका मस्तक देवमुद्रा से भूषित सुवर्णपट्ट से शोभित रहता । " इसके अतिरिक्त ग्राममहत्तर, राष्ट्रमहत्तर ( रट्ठउड = राठौड़ ); * गणनायक, दण्डनायक, तलवर, कोट्टपाल ( नगर रक्खिअ ), कौटुम्बिक, गणक ( ज्योतिषी ), वैद्य, इभ्य ( श्रीमंत ), ईश्वर, सेनापति, सार्थवाह, संधिपाल, पीठमर्द, महामात्र ( महावत ), यान १. आवश्यकचूर्णी २, पृ० २०० इत्यादि । तुलना कीजिए बौद्ध साहित्य के महामात्य वर्षकार के साथ जिसकी कूटनीति के कारण वज्जि लोगों की एकता भङ्ग हो गयी. दीर्घनिकाय कथा २, पृ० ५२२ इत्यादि । में पंचेन्द्रिय रत्नों में सेनापति, गृहपति, की गणना की गयी है । २. स्थानांग सूत्र ( ७.५५८ ) वर्धकी, पुरोहित, स्त्री, अश्व और हस्ति ३. ५, पृ० ३३ । तुलना कीजिए घोणसाख जातक ( ३५३, पृ ३२२२३ ) के साथ । यहाँ एक महत्वाकांक्षी पुरोहित का उल्लेख है जो राजा को किसी अजेय नगर को जीतने में सहायता करने के लिए यज्ञ-याग का अनुष्ठान करता है । पराजित राजाओं की आँखें और उनकी अंतड़ियाँ निकाल कर उन्हें देवता की बलि चढ़ाने के लिए वह राजा से निवेदन करता है । तथा देखिए रिचर्ड फिक, द सोशल ऑर्गनाइज़ेशन इन नार्थ-ईस्ट इण्डिया इन बुद्धा टाइम, अध्याय ७, 'द हाउस प्रीस्ट ऑव द किंग ।' ४. बृहत्कल्पभाष्य ३.३७५७ वृत्ति; राजप्रश्नीयटीका, पृ० ४० । ५. निशीथ भाष्य, ४.१७३५ । ६. यप्रतिमो चामरविरहितो तलवरो भण्यति, निशीथभाष्य ९.२५०२ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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