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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज नीतिशास्त्र में पण्डित, गवेषणा आदि में चतुर, अर्थशास्त्र में विशारद तथा औत्पत्तिकी, वैनयिको, कार्मिक और पारिणामिको नामक चार प्रकार की बुद्धियों में निष्णात था। राजा श्रेणिक उससे अपने अनेक कार्यों और गुप्त रहस्यों के बारे में मन्त्रणा किया करता था।' मन्त्री राजा को शिक्षा देता तथा खास परिस्थितियों में अयोग्य राजा को हटाकर उसके स्थान में दूसरे राजा को गद्दी पर बैठाता। वसन्तपुर का राजा जितशत्रु अपनी रानी सुकुमालिया के प्रेम में इतना पागल था कि जब राज-काज की ओर से वह उदासीन रहने लगा तो उसके मन्त्रियों ने उसे निर्वासित कर राजकुमार को सिंहासन पर बैठा दिया।
केंद्रीय शासन की व्यवस्था में परिषदों का महत्वपूर्ण स्थान था। जैन आगमा में पाँच प्रकार की परिषदों का उल्लेख है। राजा जब यात्रा के लिए बाहर जाता और जब तक वापस लौट कर न आ जाता, तब तक राज-कर्मचारी उसकी सेवा में उपस्थित रहते । इस परिषद् को पूरयंती परिषद् कहा गया है। छत्रवती परिषद् के सदस्य राजा के सिर पर छत्र धारण करते और राजा की बाध शाला तक वे प्रवेश कर सकते, उसके आगे नहीं। बुद्धि परिषद् के सदस्य लोक, वेद और शास्त्र के पण्डित होते, लोक-प्रचलित अनेक प्रवाद उनके पास लाये जाते, जिनकी वे छानबीन करते । चौथी परिषद् मन्त्री परिषद् कही जाती थी। इस परिषद् के सदस्य कौटिल्य आदि राजशास्त्रों के पण्डित होते, और उनके पैतृक वंश का राजकुल से सम्बन्ध न होता। ये हित चाहने वाले, वयोवृद्ध तथा स्वतन्त्र विचारों के होते और राजा के साथ एकान्त में बैठकर मन्त्रणा करते । पाँचवीं परिषद् का नाम है राहस्यिकी परिषद् । यदि कभी रानी राजा से रूठ जाती, रजस्वला होने के बाद स्नान करतो, या कोई राजकुमारी विवाह के योग्य होती, तो इन सब बातों की सूचना राहस्यिकी परिषद् के सदस्य राजा के पास पहुँचाते । रानियों के गुप्त प्रेम तथा रतिकर्म आदि को सूचना भी ये लोग राजा को देते रहते । .
१. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ३ ।
२. आवश्यकचूर्णी, पृ० ५३४; निशीथचूणी ११.३७६५ चूर्णी । तथा देखिए सच्चंकिर जातक (७३)।
३. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका ३७८-३८३ ।