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पहला अध्याय : केन्द्रीय शासन-व्यवस्था ५६
राजा के प्रधान पुरुष जैन ग्रन्थों में राजा, युवराज, अमात्य, श्रेष्ठि और पुरोहित-ये पाँच प्रधान पुरुष बताये गये हैं। पहले कहा जा चुका है, राजा की मृत्यु के पश्चात् युवराज को राजपद पर अभिषिक्त किया जाता; वह राजा का भाई, पुत्र अथवा अन्य कोई सगा-सम्बन्धी होता। युवराज. अणिमा, महिमा आदि आठ प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त होता, बहत्तर कलाओं, अठारह देशी भाषाओं, गीत, नृत्य तथा हस्तियुद्ध, अश्वयुद्ध, मुष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध, लतायुद्ध, रथयुद्ध, धनुर्वेद आदि में वह निपुण होता।' समस्त आवश्यक कार्यों को करने के पश्चात् वह सभामण्डप में पहुँच राजकाज की देखभाल करता । राजकुमार को युद्ध-नीति की आरम्भ से ही शिक्षा दी जाती, और यदि कोई पड़ोसी राजा उपद्रव करता तो उसे शान्त करना राजकुमार का कर्तव्य होता।
राज्याधिष्ठान में अमात्य अथवा मन्त्री का पद अत्यन्त महत्वपूर्ण था । वह अपने जनपद, नगर और राजा के सम्बन्ध में सदा चिन्तित रहता, तथा व्यवहार और नीति में निपुण होता। राजा श्रेणिक का प्रधान मन्त्री अभयकुमार शाम, दाम, दण्ड और भेद में कुशल, वश्याओं आदि के अवांछनीय सम्पर्क से मुक्त रखा जाता था, अर्थशास्त्र १.२०.१७ ।
१. औपपातिकसूत्र ४०, पृ० १८५ इत्यादि । हिन्दुओं के प्राचीन शास्त्रों में युवराज की गणना १८ तीर्थों में की गयी है । उसे राजा का दाहिना हाथ, दाहिनी आँख और दाहिना कान कहा गया है, वी० श्रार० रामचन्द्र दीक्षितार, हिन्दू एडमिनिस्ट्रेटिव इन्स्टिट्यूशन्स, पृ० १०६ इत्यादि । तथा तुलना कीजिए कुरुधम्म जातक ( २७६ प० ६६ ) के साथ । यहां पर युवराज सन्ध्या के समय राजा की सेवा में उपस्थित हो, प्रजा की शुभकामनाए स्वीकार करता है।
२. श्रावस्सयाई काउं सो पुव्वाई तु निरवसेसाई । .अत्याणीमज्झगतो पेच्छइ कज्जाई जुवराया।-व्यवहारभाष्य १, पृ० १२६ । ३. पच्चंते खुभते दुद्दन्ते सव्वतो दवेमाणो । __ संगामनीतिकुसलो कुमारो एयारिसो होई ।:-वही, प० १३१-श्र। ४. सजणवयं पुरवरं चिंततो अत्थइ नरवतिं च ।
ववहारनीतिकुसलो, अमच्चो एयारिसो अहवा ।।-वही । तथा देखिए कौटिल्य, अर्थशास्त्र १.८-६. ४-५ ।