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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज
सपत्नियां अपने सौतेले पुत्रों से ईर्ष्या करती थीं। राजकुमार गुणचन्द्र अपने पिता के मर जाने पर जब साकेत का राजा हो गया तो उसकी सौतेली मां उससे बहुत ईर्ष्या करने लगी । उसने गुणचन्द्र के. खाने के लिए एक विषैला लड्डू भिजवाया । उस समय वहाँ गुणचन्द्र के दो सौतेले भाई भी मौजूद थे । उनके लड्डू माँगने पर गुणचन्द्र ने उन्हें आधा-आधा दे दिया । लड्डू खाते ही उनके सारे शरीर में विष फैल गया और उनकी मृत्यु हो गयी ।' कुणाल जब आठ वर्ष से कुछ अधिक का हुआ तो सम्राट अशोक ने उसे पाठशाला भेजने के लिए पत्र लिखा - शीघ्रं अधीयतां कुमारः ( कुमार को शीघ्र ही विद्याध्ययन के लिए भेजा जाय ) । लेकिन कुणाल की सौतेली माँ कुणाल से ईर्ष्या करती थी । उसने चुपचाप पत्र खोलकर 'अ' के ऊपर अनुस्वार लगा, उसे बन्द कर दिया । राजकर्मचारियों द्वारा पत्र खोला गया तो उसमें लिखा था - अंधीयतां कुमारः - अर्थात् कुमार को अंधा कर दिया जाये । मौर्यवंश की आज्ञा का पालन करना अनिवार्य था, इसलिए स्वयं कुणाल ने गर्म-गर्म शलाका से अपनी आँखें आँज लीं।
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कभी रानी भी राजा की अवगणना कर उससे ईर्ष्या करने लगती थी । सेतव्या का राजा प्रदेशी श्रमणोपासक बनकर जब राजकाज की ओर से उदास रहने लगा तो उसकी रानी सूर्यकान्ता ने विष प्रयोग * से उसे मरवा डाला ।"
१. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० ४६२ इत्यादि ।
२. राजकीय पत्रों के ऊपर मोहर ( दण्डिका ) लगायी जाती थी, देखिए, बृहत्कल्पभाष्य पीठिका १६५ ।
३. बृहत्कल्पभाष्य १.३२७५ वृत्ति ।
४. विषयुक्त भोजन से अपनी रक्षा करने के लिए राजा भोजन को पहले अग्नि और पक्षियों को खिलाकर बाद में स्वयं खाता था, कौटिल्य, अर्थशास्त्र १.२१.१८.६ ।
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१५. राजप्रश्नीयसूत्र २०३ इत्यादि । कोटिल्य ने परम्परागत ऐसी अनेक स्त्रियों का नामोल्लेख किया है जिन्होंने अपने पतियों के विरुद्ध षड्यन्त्र रचकर उन्हें मरवा डाला । प्रायः शस्त्रधारी स्त्रियाँ राजप्रासाद की रक्षा के लिए तैनात रहती थीं और रानी की निर्दोषता से अच्छी तरह सन्तुष्ट हो जाने पर ही वह प्रासाद में प्रवेश करती थी । श्रतएव रानियों को मुंडी, जटी, वंचक पुरुष और