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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज
सम्बन्ध हो जाता, तथा नौकरों-चाकरों को घूस देकर व्यापारी लोग अन्तःपुर में घुस जाते । कौशांबी के राजा उदयन के पुरोहित बृहस्पतिदत्त का अन्तःपुर को रानी पद्मावती के साथ सम्बन्ध हो गया । एक दिन राजा ने दोनों को देख लिया, और उसने फौरन ही बृहस्पतिदत्त को फांसी का हुकुम सुना दिया ।" श्रीनिलयनगर में गुणचन्द्र नामक राजा राज्य करता था। किसी वणिक ने उसके अन्तःपुर की रानियों के साथ सम्बन्ध स्थापित कर लिया। पता लगने पर राजा ने वणिक को नगर के चौराहे पर खड़ा करके फांसी दिलवा दो । किसी कुलपुत्र के अन्तःपुर में अनाचार करने के कारण, अन्तःपुर में प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया ।
उसका
राजा श्रेणिक चेटक की पुत्री सुज्येष्ठा को प्राप्त करने में असफल रहा तो उसने अपने मंत्री अभयकुमार को वैशाली रवाना किया । अभयकुमार ने वणिक् का वेष धारण किया, तथा अपना स्वर और वर्ण बदलकर वह राजा के कन्या- अन्तःपुर के पास एक दुकान लेकर रहने लगा । दान, मान आदि द्वारा अन्तःपर की दासियों को उसने अपने वश में कर लिया। फिर एक दिन चुपके से उसने श्रेणिक के चित्रपट को अन्तःपुर में भिजवा दिया जिसे देखकर सुज्येष्ठा और चेल्लणा दोनों बहनें श्रेणिक पर मुग्ध हो गयीं । तत्पश्चात् अभयकुमार
अन्तःपुर तक एक सुरंग खुदवाई और चेल्लणा को प्राप्त करने में वह सफल हुआ ।
'बृहत्कल्पभाष्य में उल्लेख है कि अन्तःपुर को कन्याएं वातायन में बैठकर विपुत्रों के साथ वार्तालाप किया करती थीं। उनपर कोई अंकुश न रहने के कारण वे उनके साथ चली जातीं ।" बन्दर आदि कंदर्पबहुल मायावी पशु-पक्षियों का प्रवेश भी अन्तःपुर में निषिद्ध था, इससे भी यही सिद्ध होता है कि अन्तःपुर की रक्षा के लिए राजा को अत्यन्त सावधानी रखनी पड़ती थी ।
१. त्रिपाकसूत्र ५, पृ० ३४-३५ ।
२. पिण्डनियुक्ति १२७ टीका ।
३. निशीथभाष्य ५. २१५२ की चूर्णां ।
४. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६५ इत्यादि । ५. १.६६१ इत्यादि ।
६. वही ५.५६२३ ।