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________________ ! पहला अध्याय : केन्द्रीय शासन व्यवस्था ५५ लेकर जाता ।' महत्तर अन्तःपुर का एक अन्य अधिकारी था । रानियों को राजा के पास लाना, ऋतु स्नान के पश्चात् उन्हें कहानी सुनाना, उनके कोप को शान्त करना तथा कोप का कारण ज्ञात होने पर राजा से निवेदन करना - यह उसका मुख्य कार्य था । दण्डधर हाथ में दण्ड धारण कर अन्तःपुर का पहरा देते रहते, दण्डारक्षिक राजा की आज्ञा से किसी स्त्री अथवा पुरुष को अन्तःपुर में ले जाते, तथा दौवारिक द्वार पर बैठकर अन्तःपुर की रक्षा करते । 3 इतनी सावधानी रखते हुए भी, अन्तःपुर की रानियाँ किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्प्रलग्न होकर अनैतिक आचरण करती हुई पाई जातीं, जिसका परिणाम अनर्थकारी होता । सतत आवागमन के कारण राजा के मन्त्री॰ और पुरोहित का अन्तःपुर की रानियों से ६ १. निशीथचूर्णी ६. २५१५ - १६, पृ० ४५२ । वाचरपति ने अपने कोष में कंचुकी के लक्षण बताते हुए कहा है अन्तःपुरचरो वृद्धो विप्रो गुणगणान्वितः । सर्वकार्यार्थकुशलो कंचुकीत्यभिधीयते ॥ २. निशीथचूर्णी ६, पृ० ४५२ । वात्स्यायन ने कंचुकी और महत्तर का उल्लेख किया है । ३. अभिधानराजेन्द्रकोष में देखिए 'दण्डधर' शब्द | • ४. वही, देखिए 'दण्डारक्खिय' शब्द | ५. औपपातिकसूत्र ६, पृ० २५ । मातंग जातक ( नं० ४६७, पृ० ५६० > में दौवारिक के सम्बन्ध में कहा है कि वह चांडालों या महल के अन्दर झांककर देखने वाले बदमाश लोगों को किसी लकड़ी या बांस से फटकारता, उनकी गर्दन पकड़ लेता और उन्हें जमीन पर पटक देता । ६. तुलना कीजिए - श्रहो सूर्यं पश्यानामपि यद्राजयोषिताम् । शीलभंगो भवत्येवमन्यनारीषु का कथा || —शृङ्गारमंजरी ५६१, पृ० ६६ । ७. सेयविया के राजा प्रदेशी का कथन था कि यदि कोई उसकी रानी से विषयभोग करे तो उसके हाथ-पैर काटकर उसे शूली पर चढ़ा दिया जायेगा, राजप्रश्नीयसूत्र भाग २, पएसिकहाराय ४० । घत जातक (३५५, पृ० ३३०) में एक मन्त्री को कथा दी है जिसे राजा के अन्तःपुर को दूषित करने के कारण नगर से निकाल दिया गया था । वह कोशल देश में पहुँचकर कोशल के राजा का मन्त्री बन गया, और कोशल के राजा को उकसाकर, उसने अपने पहले राजा के ऊपर चढ़ाई करवा दी । तथा देखिए महासीलव जातक ( ५१ ) ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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