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________________ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज अन्तःपुर के रक्षक अन्तःपुर से सदा खतरा बना रहता, इसलिए राजा को बड़ी सावधानीपूर्वक उसकी रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहना पड़ता था। नपुंसक और वृद्ध पुरुष अन्तःपुर की रक्षा के लिए तैनात रहते।' वात्स्यायन के अनुसार सगे-सम्बन्धियों और नौकर-चाकरों के सिवाय, अन्य किसी व्यक्ति को अन्तःपुर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। पुष्प आदि देने के लिए ब्राह्मण अन्तःपुर में जाते थे, लेकिन पर्दे के भीतर से हो वे रानियों से बातचीत करते थे। __ जैन ग्रन्थों में नपुंसक को दीक्षा के अयोग्य बताया गया है। नपुंसकों का स्वभाव महिलाओं जैसा होता है, उनका स्वर और वर्ण भिन्न रहता है, लिंग उनका बड़ा, वाणी कोमल, तथा मूत्र सशब्द और फेनरहित होता है। चाल उनकी स्त्रियों जैसी होती है, त्वचा कोमल और शरीर छूने में शीतल लगता है।' नपुंसक बनाने की विधियों का उल्लेख भी मिलता है। बालक के पैदा होते ही अंगूठे, प्रदेशिनी और बीच की उंगली से उसके दोनों अण्डकोषों को मलकर तथा औषधि आदि के प्रयोग से उसे नपुंसक बनाया जाता, और नपुंसक कर्म की शिक्षा दी जाती। इसे वर्षधर कहा गया है। __ कंचुकी को राजा के महल में आने-जाने की छूट थी। वह विनीत वेष धारण करता, तथा राजा की आज्ञापूर्वक अन्तःपुर की रानियों के पास राजा का संदेश लेकर, और रानियों का संदेश राजा के पास १. कौटिल्य ने वृद्धा स्त्रियों और नपुंसकों से अन्तःपुर की रक्षा करने का विधान किया है, अर्थशास्त्र १.२१.१७.३१ । २. चकलदार, स्टडीज़ इन द कामसूत्र, पृ० १७६ । ३. बृहत्कल्पसूत्र ४.४; भाष्य ४.५१४४ । यहाँ चौदह प्रकार के नपुंसकों का उल्लेख है-पण्डक, वातिक, क्लीव, कुम्भी, ईष्यालु, शकुनी, तत्कर्मसेवी, पाक्षिकापक्षिक, सौगन्धिक, आसिक्त; तथा देखिए वही ५१६६; निशीथभाष्य ११.३५६७ इत्यादि; तथा नारद १२.११ इत्यादि; कथासरित्सागर, जिल्द ८, परिशिष्ट 'इण्डियन यूनक्स', पृ० ३१६-३२६ । ४. बृहत्कल्पभाष्य ४.५१६६-६७ वृत्ति; विपाकसूत्र २, पृ० १६; निशीथभाष्य ११.३६००।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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