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________________ पहला अध्याय : केन्द्रीय शासन व्यवस्था ५३ के पैर के अंगूठे के बराबर भी तुम्हारा अन्तःपुर नहीं ।" यह सुनकर राजा सोच विचार में पड़ गया, और किसी विद्या के बल से सोती हुई द्रौपदी का अपहरण कर उसे अपने यहां मंगवा लिया' । कालकाचार्य की रूपवती साध्वी भगिनी सरस्वती की कथा जैन साहित्य में सुप्रसिद्ध है। उज्जैनी के राजा गर्दभिल्ल ने उसके सुन्दर रूप पर मोहित हो उसे अपने अन्तःपुर में रख लिया था । कालकाचार्य के बहुत कहने-सुनने पर भी जब गर्दभिल्ल ने सरस्वती को नहीं लौटाया तो पारसकूल ( पर्शिया ) के ९६ शाहों की सहायता से उसने गर्दभिल्ल को पराजित कर, सरस्वती को पुनः श्रमधर्म में दीक्षित किया । एक बार कृष्ण वासुदेव गजसुकुमार के साथ हाथी पर सवार हो नेमिनाथ की बन्दना के लिए जा रहे थे । उन्होंने सोमिल ब्राह्मण की रूपवती कन्या को राजमार्ग पर गेंद खेलते हुए देखा। उसके रूप-सौंदर्य से विस्मित हो, कृष्ण वासुदेव ने गजसुकुमार के साथ उसका विवाह करने के लिए उसे अन्तःपुर में रखवा दिया। हेमपुर नगर में हेमकूट नाम का राजा हेम नामक राजकुमार के साथ राज्य करता था । एक. बार की बात है, इन्द्रमह के अवसर पर कुल-बालिकाएं दीप, धूप, पुष्प आदि ग्रहण कर इन्द्र की पूजा करने जा रही थीं । राजकुमार उन्हें देखकर मोहित हो गया और उसने उन सबको राजा के अन्तःपुर में रखवा दिया। नागरिकों को जब इस बात का पता चला तो वे राजा के पास पहुँचे और हाथ जोड़कर उन्होंने अपनी कन्याओं को वापिस लौटा देने की प्रार्थना की। लेकिन राजा ने यह कहकर उन्हें संतोष दिलाया कि क्या तुम लोग राजपुत्र को अपना जामाता नहीं बनाना चाहते । ४ इन्द्रपुर के इन्द्रदत्त नाम के भी उसने अमात्य की कन्या से को भी ज्ञात थी । * राजा के यद्यपि बाईस पुत्र थे, फिर सन्तान पैदा की, और यह बात अमात्य १. ज्ञातृधर्मकथा १६ । २. निशीथचूर्णी १०.२८६० की चूर्णां, पृ० ५६ | ३. अन्तःकृद्दशा ३, पृ० १६ इत्यादि । ४. बृहत्कल्पभाष्य ४.५१५३. ५. आवश्यकचूर्णी, पृ० ४४८-४६ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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