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________________ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज राजा और राजपुत्रों के सम्बन्ध राजपुत्रों के उत्तराधिकार प्राप्त करने को लोलुपता के कारण, राजा उनसे शंकित और भयभीत रहता, तथा उन पर कठोर नियंत्रण रखता । फिर भी महत्वाकांक्षी राजपुत्र मौका लगने पर अपने कुचक्रों में सफल हो ही जाते । मथुरा का नंदिवर्धन नाम का राजकुमार अपने पिता की हत्या कर राजसिंहासन को हथियाना चाहता था । उसने एक नाई को रिश्वत देकर क्षौरकर्म करते समय राजा की हत्या कर देने का षड्यंत्र रचा, लेकिन डर के मारे नाई ने सब भेद खोल दिया । राजा ने फौरन ही नंदिवर्धन को फांसी पर चढ़ाने का हुक्म दिया। कितनी ही बार राजपुत्र अपनी कारस्तानी में सफल हो जाते और राजा का वध कर स्वयं सिंहासन पर बैठ राज करने लगते । राजगृह के राजा कूणिक ने अपने सौतेले भाइयों की सहायता पाकर अपने पिता श्रेणिक ( बिम्बसार ) को पकड़वा, बेड़ी में बांध जेल में डलवा दिया, और अपने-आप राजसिंहासन पर बैठ गया । तत्पश्चात् अपनी माता के कहने-सुनने पर वह परशु लेकर राजा की बेड़ियां काटने चला, लेकिन राजा ने समझा कि कूणिक उसे मारने आ रहा है, इसलिए कूणिक के आने के पहले ही तालपुट विष खाकर उसने अपना प्राणान्त कर लिया । " किसी राजपुत्र द्वारा, एक गड़रिए की सहायता से, राजपद पर आसीन अपने ज्येष्ठ भ्राता की आँखें फुड़वाकर स्वयं राजगद्दी पर बैठने का उल्लेख उत्तराध्ययन की टीका में मिलता है । ४६ करते हैं । लेकिन कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ स्त्रियों के राज्य का उल्लेख किया गया है । उदय जातक ( ४५८, पृ० ३०७ ) के अनुसार राजा उदय की मृत्यु हो जाने पर, उसकी विधवा रानी ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ली । १. कौटिल्य के अर्थशास्त्र (१.१७.१३.१ ) में राजा को अपनी रानियों और पुत्रों से सदा सावधान रहने के लिए कहा 1 २. विपाकसूत्र ६, पृ० ३९ | ३. श्रावश्यकचूर्णी २, पृ० १७१ । बौद्ध परम्परा के अनुसार अजातशत्रु ने बिम्बसार को कैद करके तापनगेह में रक्खा था, देखिए दीघनिकाय टीका १, पृ० १३५ इत्यादि । ४. १३, पृ० १६७ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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