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________________ पहला अध्याय : केन्द्रीय शासन व्यवस्था ૪૧ दीक्षा छोड़ वह वापिस लौट आया । यह देखकर उसका कनिष्ठ भ्रता उसे अपने पद पर बैठा, स्वयं श्रमणधर्म में दीक्षित हो गया ।" कभी राजा युवराज का राज्याभिषेक करने के पश्चात् स्वयं संसार-त्याग करने को इच्छा व्यक्त करता, लेकिन युवराज राजा बनने से इन्कार कर देता और वह भी अपने पिता के साथ दीक्षा ग्रहण कर लेता । पृष्ठचम्पा में शाल नाम का राजा राज्य करता था, उसका पुत्र महाशाल युवराज था । जब शाल ने अपने पुत्र को राजसिंहासन पर बैठाकर स्वयं दोक्षा ग्रहण करने की इच्छा व्यक्त की तो महाशाल ने राजपद अस्वीकार कर दिया और अपने पिता के साथ वह भी दीक्षित हो गया। यदि राजा और युवराज दोनों ही राजपाट छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर लेते और उनकी कोई बहन होती और उसका पुत्र इस योग्य होता तो उसे राजा के पद पर अभिषिक्त किया जाता । उपर्युक्त कथा में शाल और महाशाल के दीक्षा ग्रहण कर लेने पर, बहन पुत्र गग्गलि को राजसिंहासन पर बैठाया गया । सोलह जनपदों, तीन सौ तिरसठ नगरों और दस मुकुटबद्ध राजाओं के स्वामी वीतिभय के राजा उद्रायण ने अपने पुत्र के होते हुए भी केशी नाम के अपने भानजे को राजपद सौंपकर महावीर के पादमूल में जैन दीक्षा स्वीकार की ।" राज्य-शासन की व्यवस्थापिका स्त्रियों के उल्लेख, एकाध को छोड़कर, प्रायः नहीं मिलते । महानिशीथ ( पृ० ३० ) में किसी राजा की एक विधवा कन्या की कथा आती है, जो अपने परिवार की कलंक से रक्षा करने के लिए सती होना चाहती थी । लेकिन राजकुल में सती होने को प्रथा नहीं थी, इसलिए राजा ने उसे रोक दिया। इसके बाद राजा की मृत्यु हो जाने पर जब कोई उत्तराधिकारी न मिला तो उस विधवा कन्या को राजपद ( इत्थिनरिंद ) दिया गया ।" १. ज्ञातृधर्मकथा १६ । २. उत्तराध्ययनटीका १०, पृ० १५३ - श्र ३. वही । ४. व्याख्याप्रज्ञप्ति १३.६ । ५. कंडिन जातक ( १३, पृ० २०२ ) में कहा है कि वह देश निन्दनीय जहाँ स्त्रियाँ न्यायाधीश हैं, और जहाँ उनकी शासन व्यवस्था चलती है । इसी तरह से वे पुरुष भी निन्दा के योग्य हैं जो स्त्रियों के वशीभूत रहकर कार्य
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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