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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज ......----. तो पिता की मृत्यु के बाद ज्येष्ठ राजपुत्र ही राजपद को शोभित करता और उसके कनिष्ठ भ्राता को युवराज पद मिलता।
जैन आगमों में सापेक्ष और निरपेक्ष नामक दो प्रकार के राजा बताये गये हैं। सापेक्ष राजा अपने जीवनकाल में ही अपने पुत्र को युवराज पद दे देता जिससे राज्य को गृहयुद्ध आदि संकटों से रक्षा हो जाती। निरपेक्ष राजा के सम्बन्ध में यह बात नहीं थी। उसकी मृत्यु के बाद ही उसके पुत्र को राजा बनाया जाता ।
यदि राजा के एक से अधिक पुत्र होते तो उनकी परीक्षा की जाती, और जो राजपुत्र परीक्षा में सफल होता, उसे युवराज बनाया जाता । किसी राजा ने अपने तीन पुत्रों की परीक्षा के लिए उनके सामने खीर की थालियां परोसकर रक्खों और जंजीर में बंधे हुए भयंकर कुत्तों को उन पर छोड़ दिया। पहला राजकुमार कुत्तों को देखते ही खीर को थाली छोड़कर भाग गया। दूसरा उन्हें लकड़ी से मार-मारकर स्वयं खीर खाता रहा। तीसरा स्वयं भी खीर खाता रहा और कुत्तों को भी उसने खिलाई। राजा तीसरे राजकुमार से अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने उसे युवराज बना दिया।'
कभी राजा की मृत्यु हो जाने पर जिस राजपुत्र को राजसिंहासन पर बैठने का अधिकार मिलता, वह दीक्षा ग्रहण कर लेता, और इस हालत में उसके कनिष्ठ भ्राता को राजा के पद पर बैठाया जाता ।' कभी दीक्षित राजपुत्र संयम धारण करने में अपने आपको असमर्थ पा, दीक्षा त्यागकर वापिस लौट आता, और उसका कनिष्ठ भ्राता उसे अपने आसन पर बैठा, स्वयं उसका स्थान ग्रहण करता। साकेत नगरी में कुंडरीक और पुण्डरीक नाम के दो राजकुमार रहा करते थे। कुंडरीक ज्येष्ठ था और पुंडरीक कनिष्ठ । कुंडरीक ने श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर ली, लेकिन कुछ समय बाद संयम पालन में असमर्थ हो,
१. अभिषेक होने के पूर्व की अवस्था को यौवराज्य कहा है-दोच्चं जुवरायाणं णाभिसिंचति ताव जुवरज्जं भएणति, निशीथचूर्णी ११.३३६३ की चूर्णी ।
२. व्यवहारभाष्य २.३२७ ।
३. वही ४.२०६ श्रादि; तथा ४.२६७; तुलना कीजिये पादंजलि जातक (२४७) के साथ।
४. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २४६ ।