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________________ पहला अध्याय : केन्द्रीय शासन-व्यवस्था. श्रद्धावान होना चाहिए ।' चम्पा का राजा कूणिक (अजातशत्रु ) एक प्रतापशाली क्षत्रिय राजा था। उसे अत्यन्त विशुद्ध, चिरकालीन राजवंश में प्रसूत, राजलक्षणों से युक्त, बहुजनसम्मानित, सर्वगुण-समृद्ध, राज्याभिषिक्त और दयालु बताया गया है। वह सीमा का प्रतिष्ठाता, क्षेमकारक और जनपद का पालक था, दान-मान आदि से वह लोगों को सम्मानित करता तथा धन, धान्य, सुवर्ण, रूप्य, भवन, शयन, आसन, यान, वाहन, दास, दासी, गाय, भैंस, माल-खजाना, कोठार और शस्त्रागार आदि से सम्पन्न था। मतलब यह है कि शासन की सुव्यवस्था के लिए राजा का सुयोग्य होना आवश्यक था। यदि राज्य में किसी प्रकार की गड़बड़ी होती या उपद्रव हो जाता जिससे अराजकता फैल जाती तो प्रजा को बहुत कष्ट होता, और विरुद्धराज्य की ऐसी दशा में जैन साधुओं का गमनागमन रुक जाता। श्वेत तुरग पर आरूढ़, मुकुटबद्ध, चन्दन से उपलिप्त शरीरवाले तथा अनेक हाथी, घोड़े और रथों से परिवृत, जयजयकार के साथ गमन करते हुए राजा का उल्लेख आता है। राजा उद्रायण ने उज्जैनी के राजा प्रद्योत को श्रमणोपासक जान, उसके मस्तक पर बने हुए श्वान के पदचिह्न को ढंकने के लिये उसे सुवर्णपट्ट से भूषित किया, तब से पट्टबद्ध राजाओं के राज का आरम्भ हुआ माना जाता है। उससे पहले मुकुटबद्ध राजा होते थे।" . युवराज और उसका उत्तराधिकार राजा का पद साधारणतया वंश-परम्परागत माना गया है। यदि राजपुत्र अपने पिता का इकलौता बेटा होता तो राजा की मृत्यु के पश्चात् प्रायः वही राजसिंहासन का अधिकारी होता। लेकिन यदि उसके कोई सगा या सौतेला भाई होता तो उनमें परस्पर ईर्ष्या-द्वेष होने लगता और राजा की मृत्यु के पश्चात् यह द्वेष भ्रातृघातक युद्धों में परिणत हो जाता। साधारणतया यदि कोई अनहोनी घटना न घटती १. व्यवहारभाष्य १, पृ० १२८-अ आदि । २. औपपातिक सूत्र ६, पृ० २० । ३. बृहत्कल्पसूत्र १.३७, निशीथसूत्र ११-७१ का भाष्य । ४. निशीथचूर्णी, पृ० ५२। ५. वही १०.३१८५ चूर्णी, पृ० १४७।। . .
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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