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________________ ४२ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज आदि विविध कलाओं का उपदेश दिया और दण्ड-व्यवस्था का विधान किया। ' जैन आगमों में सात प्रकार को दण्डनीति बतायी गयी है। पहले और दूसरे कुलकर के समय हक्कार नीति प्रचलित थो, अर्थात् किसी अपराधी को 'हा' कह देने मात्र से वह दण्ड का भागी हो जाता था । तीसरे और चौथे कुलकर के काल में 'मा' (मत ) कह देने से वह दण्डित समझा जाता था, इसे मक्कार नीति कहा गया है। पाँचवें और छठे कुलकर के समय धिक्कार नोति का चलन हुआ। तत्पश्चात् , ऋषभदेव के काल में परिभाषण (क्रोधप्रदर्शन द्वारा ताड़ना) और परिमण्डलबंध (स्थानबद्ध कर देना), तथा उनके पुत्र भरत के काल में चारक (जेल) और छविच्छेद (हाथ, पैर, नाक आदि का छेदन) नामक दण्डनीतियों का प्रचार हुआ। प्राचीन भारत में प्रजा का पालन करने के लिए राजा का होना अत्यन्त आवश्यक प्रताया गया है। राजा को सर्वगुण-सम्पन्न होना चाहिए । यदि वह स्त्रियों में आसक्त रहता है, द्यूत रमण करता है, मद्यपान करता है, शिकार में समय व्यतीत कर देता है, कठोर वचन बोलता है, कठोर दण्ड देता है और धन सञ्चय के लिए प्रयत्नशील नहीं रहता तो वह नष्ट हो जाता है। उसका मातृ और पितृ पक्ष शुद्ध होना चाहिये, प्रजा से दसवां हिस्सा टैक्स लेकर उसे संतुष्ट रहना चाहिए; लोकाचार, वेद और राजनीति में उसे कुशल तथा धर्म में १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति २.२६; आवश्यकचूर्णी, पृ० १५३-५७ । महाभारत (शान्तिपर्व ५८ ) में कहा है कि समाज मे अराजकता फैल जाने पर देवगण विष्णु के पास पहुंचे और विष्णु ने पृथु को राजपद पर बैठाया । सर्वप्रथम राजा पृथु ने जमीन में हल चलवा कर १७ प्रकार के धान्यों की खेती कराई । इस अवसर पर ब्रह्मा ने समाज के कल्याण के लिए शत-सहस्र अध्याय वाले एक ग्रन्थ की रचना की जिसमें धर्म, अर्थ और काम का निरूपण किया गया । दण्डनीति का निरूपण भी इसी समय हुआ। २. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति: वही; स्थानांगसूत्र ७.५५७ । ३. तस्मात्स्वधर्म भूतानां राजा न व्यभिचारयेत् ; कौटिल्य, अर्थशास्त्र १.१३.१६, पृ० ११ । ४. निशीथभाष्य १५.४७६६ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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