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________________ पहला अध्याय : केन्द्रीय शासन व्यवस्था इन्हीं सब कारणों से कौटिल्य का विधान है कि राजा को केकड़े के समान अपने पुत्रों से सदा सावधान रहना चाहिए, और उच्छृङ्खल राजकुमारों को किसी निश्चित स्थान अथवा दुर्ग आदि में बन्द करके रखना चाहिए ।' ऐसी दशा में राजकुमार राजा के भय से पहले से ही किसी सुरक्षित स्थान में जाकर रहने लगते । राजा श्रेणिक अपने पिता के डर से बेन्याट के किसी व्यापारी के घर जाकर रहने लगा था । उज्जैनी का राजपुत्र मूलदेव समस्त कलाओं में निष्णात था; वह उदारचित्त, शूरवीर और गुणानुरागी था, लेकिन जुआ खेलने का उसे व्यसन था । राजा को उसकी यह आदत पसन्द न थी । इसलिए उसने मूलदेव को अपमानित करके घर से निकाल दिया ।' शंखपुर के राजकुमार अगड़दत्त को भी राजा ने उसके दुर्व्यसनों के कारण देशनिकाला दे दिया था । ४७ उत्तराधिकार का प्रश्न उत्तराधिकार का प्रश्न बड़ा जटिल और गम्भीर था । यथासंभव राजा के पुत्र को ही राजगद्दी का उत्तराधिकारी बनाया जाता । लेकिन दुर्भाग्य से यदि पुत्रविहीन राजा को मृत्यु हो जाय तो क्या किया जाये ? ऐसी दशा में कोई उपायान्तर न होने पर मन्त्रियों की सलाह से, धर्मश्रवण आदि के बहाने साधुओं को राजप्रासाद में आमन्त्रित कर, - उनके द्वारा सन्तानोत्पत्ति करायी जाती । " उत्तराधिकारी खोज निकालने के लिए यथासम्भव सभी प्रकार के उपाय काम में लिए जाते। इस सम्बन्ध में बृहत्कल्पभाष्य में एक मनोरंजक कथा आती है। किसी राजा के तीन पुत्र थे। तीनों ही ने १. अर्थशास्त्र १.१७.१३ । २. आवश्यकचूर्णी, पृ० ५४६ । ३. उत्तराध्ययनटीका ३ पृ० ५६ इत्यादि । सुच्चज जातक ( ३२०, पृ० २३४-३५ ) में राजा अपने पुत्र से शंकित होने के कारण उसे बनारस जाकर रहने की आज्ञा देता है । राजकुमार प्राज्ञा का पालन छोड़ कर करता है । ४. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ८३ - इत्यादि । ५. बृहत्कल्पभाष्य ४.४६५८ । तुलना कीजिए कुस जातक ( ५३१ ) के साथ
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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