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________________ ५४० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज विरंग = विचित्र रंग ३०३२ (६०) | सक्खी = साखी १६४४ (६०) विरल्ल = विस्तार ४. ४६ (व्य०) | सगल-सब ( सगळा मराठी में) विरंगण = नासिकादि का काटना १०८० (६०) २५०० (६०) सगोरहग = बछड़े से युक्त (गोरहग विलओलय-लुटेरा २६१५ (६०) | =बैल ) २३४६ (६०) विवच्चि = बिवाई २८८४ (बृ.) सचोप्पडय-चुपड़कर ५२४ (बृ०) विस्संभर = एक प्रकार का जंतु सन्जित्था = शक्ति २२५ (नि०) ३२३ (ओ०) सज्झिल = सगा भाई ४८०६ (बृ.) विह = मार्ग ७४२ (६०) | सट्टर = आलजाल ५२८४ (६०) वीरल्ल = ओलायक = ओलावअ = सण्णि = श्रावक १०. ५५७ (व्य०) हलायक-श्येन-बाज़ ३५४४ (बृ०) सपाय = सगपाय : सण्णामत्तक वीसं विष्वक-पृथक् १०४८ (बृ०) (संज्ञामात्रक) ३.८० (नि०चू०) वीसुभिअ = विश्वग्भूत = कालगत समा = वर्षा १२१८ (६०) ३७६० (बृ.) समितिम गेहूँ के आटे का बना वुच्छं = विनष्ट १२७१ (बृ.) ... हुआ मांडा ३०६६ (६०) । वेंटल-वशीकरणादि प्रयोग २७६७ सरडू = जिसमें अभी गुठली न (बृ०) वेसणया प्रवेश करने योग्य ४६४६ पड़ी ही ऐसे फल १०८२ (६०) (ब) सस्सिय = किसान ३६३१ (६०) वेसवार (वेसवार मराठी) = धनिया सहोढ ( सविहोढ) = चोरी का आदि मसाला १४६४ (नि० चू०)। माल लिये हुए (रंगे हाथों) ६२३ वेस्सा = द्वेष्या = वेश्या ६२५६ । . (बृ०) (बृ.) सागारिय = उपाश्रय का मालिक २०८३ (६०) संख = संग्राम ४१२२ (६०) सामत्थण = पर्यालोचन २१४२ (६०) संगिल्ल = गायों का समुदाय २.२३ (व्य०) सारण = उपदेश २६६२ (६०) संघाडी-एक वस्त्र ५१२ (नि० चू०) सारणी = णिक्का = क्यारी ३२६ संडेव = पाषाण आदि ३१ (ओ०)| (नि०) संभलि = दूती ५. ७३ (व्य०) सारवण = प्रेमार्जन ५५४८ (६०) संवर = कचरा उठाने वाले ७.४५६ सासेरा = यंत्रमयी नर्तकी ६२३० (व्य०) (६०) सइज्झिय-पड़ौसी (शेजारी मराठी साही (साहीय) = घरपंक्ति १४८५ में) १५३६ (६०) (नि०)
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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