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________________ परिशिष्ट ३ ५३९ रोहिणिज्जा-अन्तःपुर की स्वामिनी | वड्डुबक = वडुंबक-बहुत से ३७६ (६०) सम्बन्धी ५१८७ (६०) वत्ती = खड़िया १५८ ( बृ०) लंद = काल १४३८ (६०) वद्दल = बादल ७४२ (बृ०) लडह - मनोज्ञ २३०५ (बृ०) । वरंडग = बरामदा ४८२४ (६०) लसुण (लसूण मराठी) = लहसुन वलय = धान्य आदि भरने का ८६७ ' बृ०) कोठार ३२६८ (बृ०) लाउणालो = वींटी ५११ (नि०) | | वलवा (वड़वा मराठी) = घोड़ी लाउलिग = डंगर-लाठी लिये हुए २२८३ (६०) ४२६८ (६०) वाइ = एक प्रकार का मद्य ४६२ लाया = लाजा ४८७ (नि०) . (नि०) लाला = बत्ती ३४६५ (६०) वाउलणा-व्याकुलता ११७५ (६०) लूह = रूक्ष १३५८ (६०) वाउलग्ग-पुरुष का पुतला (बाहुली लेच्छारिअ = लिप्त ६१०८ (नि०)| मराठी में) १५५ (नि०) लेव = बर्तन पर रंग करना ३३० वाडी - बाड १०६६ (बृ० ) (नि०) वाणिगिणी = प्रोषितभर्तृका २८४७ लोढण = कपास ओटना ४७४ (बृ०) (ओ०) वारय = घट २०४८ (६०) लोही = कवल्ली = कड़ाही २६५१ | वारवारेण = बारबार ५१२ (६०) (नि०) वालचिय = पुरुष ४०५ (पिं०) वालुंक = ककड़ी ३७६ (६०) विंटय = अंगूठी (बीटी मराठी में) वंठ = जिसका विवाह न हुआ हो | २२५२ ( बृ०) __२१८ ( ओ०) विकडु = कड़वी औषधि १०१० वइ (बइ मराठी ) = बाड़ी २७६ (६०) (नि०) | विगुरुव्विय = वस्त्रादि से अलंकृत वक्खर = भांड ४४७७ (६०) २२०१ (६०) वच्चागि = चार्वाक ३. ३४४ (व्य०) विच्छू = बिच्छू ६१६ (६०) वट्टखुर = गोल खुरवाला ( घोड़ा) विजल (देखिए बिजल) ३७४७ (६०) वियण ( वियणि )=पंखा (बीजना वड = विभाग ६१४२ (नि० चू०) हिन्दी में) २४२ ( नि०) वडग = बड़ा ६३७ (पिं०) वियरग = कूपिका २८१६ (६०) वडसाला = डाली १३५ (नि०). | वियाया = प्रसूता ( ब्याना हिन्दी) वडार = बंटवारा ६५५ ( ओ०) । ७. ३०४ (व्य०)
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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