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५२४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज जो स्थान बौद्ध परम्परा में सम्राट अशोक का है, वही स्थान राजा सम्प्रति का जैन परम्परा में बताया गया है।
. आचार्य कालक के समकालीन राजा
उज्जयिनी का शासक राजा गर्दभिल्ल विक्रमादित्य का पिता बताया गया है। उसने कालकाचार्य को रूपवती भगिनी के रूप सौंदर्य से आकृष्ट हो, उसेअपने अन्तःपुर में रखवा दिया । कालकाचार्य ने राजा को बहुत समझाया-बुझाया, लेकिन जब वह न माना तो आचार्य ने पारसकूल ( पर्शिया ) के लिए प्रस्थान किया, और वहाँ से ६६ शाहों को लेकर वे लौटे। दोनों ओर से घमासान युद्ध हआ। अन्त में गदमिल्ल की हार हुई और उज्जयिनो में शकों का राज्य हो गया। ___ कुछ समय के पश्चात् गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य ने विदेशियों को मारकर फिर अपना राज्य स्थापित किया । जैन मान्यता के अनुसार गर्दभिल्ल का राज्य तेरह, और शकों का राज्य चार वर्ष तक कायम रहा।
प्रतिष्ठान का राजा शालिवाहन ( सातवाहन अथवा हाल ) इस समय का एक दूसरा उल्लेखनीय शासक हो गया है। उसके मंत्री का नाम खरक था। उसकी सेना बहुत शक्तिशालो थी भृगुकच्छ के राजा नहवाहण ( नहपान ) से उसकी नोंक-झोंक चला करतो थो। वह प्रतिवर्ष भृगुकच्छ पर आक्रमण किया करता । लेकिन नहवाहस के पास इतना द्रव्य था कि उसका जो सिपाही शत्रु के सिपाहियों का सिर काटकर लाता उसे वह मालामाल कर देता। ऐसी हालत में शालिवाहन निराश होकर प्रतिष्ठान लौट जाता। एक बार की बात है, शालिवाहन ने अपने मंत्री को बुलाकर उसके साथ एक षड्यंत्र रचा। राजा ने मंत्री का अपमान कर उसे देश से निकाल दिया | मन्त्री सोधा भृगुकच्छ पहुँचा और वहाँ वह नहवाहण के मन्त्री पद पर नियुक्त हो गया। धीरे-धीरे राजा का विश्वास प्राप्त कर उसने राजकोष का धन
१. निशीथचूर्णी १०, प० ५७१ आदि ; व्यवहारभाष्य १०.५, पृ० ९४ । २. देखिए सी० जे० शाह, जैनिज्म इन नार्थ इंडिया, प० २८,१८८ ।।
३. नभोवाहन के सम्बन्ध में अन्य परम्परा के लिए देखिए चतुर्विंशतिप्रबंध १५, पृ० १३६ आदि; प्रबंधचिंतामणि १ १० १७; तथा अर्ली हिस्ट्री आव डेकन, पृ० २९-३२; रायचौधुरी, वही, पृ० ४०५ आदि ।