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परिशिष्ट २
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मन्दिरों, स्तूपों, सरोवरों, पुष्करिणियों और खाइयों के 'निर्माण में लगवा दिया, जो बाकी बचा उससे रानियों के आभूषण गढ़वा दिये । उसके बाद राजा शालिवाहन के पास उसने एक गुप्त सन्देश भेजा और राजा ने अपने दल-बल सहित उपस्थित होकर राजा को जोत लिया।
राजा शालिवाहन को कालकाचार्य का परम उपासक माना गया है । उसके अनुरोध पर कालकाचार्य ने पर्यूषण पर्व को तिथि भाद्रपद सुदी पंचमी से बदल कर चतुर्थी कर दी थी। इसी समय से महाराष्ट्र में श्रमणपूजा नामक उत्सव आरम्भ हुआ माना जाता है ।
राजा शालिवाहन प्राकृत का बहुत बड़ा विद्वान् था । प्राकृत की गाथासप्तशती का वह संकलनकर्ता माना जाता है । इस काव्य में अभिव्यंजना से पूर्ण एक-से-एक सुन्दर ७०० मुक्तकों का संग्रह है ।
१. निशीथचूर्णी १०, पृ० ६३२ आदि ।
२. आवश्यक नियुक्ति १२९९; आवश्यकचूर्णी २, पृ० २०० आदि ।