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________________ परिशिष्ट २ . . ५१७ प्रद्योत और शतानीक का युद्ध शतानीक और प्रद्योत दोनों साढू थे। प्रद्योत जब युद्ध के लिए कौशाम्बी पहुँचा तो शतानोक अपनी सेना को यमुना के दक्षिणी किनारे से हटाकर उत्तरी किनारे पर ले गया। शतानीक के सिपाही घोड़ों पर चढ़कर प्रद्योत के शिविर में घुस गये और प्रद्योत के सिपाहियों के नाक-कान काट लाये । इससे प्रद्योत हताश होकर वापिस लौट गया ।' प्रद्योत द्वारा रानी मृगावती की मांग प्रद्योत तभी से खार खाये बैठा था। एक बार की बात है, राजा शतानीक ने एक चित्रकार को देशनिकाला दे दिया । घूमताघूमता वह उज्जैनी पहुंचा और उसने शतानीक की रानो मृगावती का एक सुन्दर चित्र प्रद्योत को दिखाया। प्रद्योत रानी का रूप-सौंदर्य देखकर रीझ गया। उसने फौरन हो कौशाम्बी को दूत रवाना किया, और शतानीक को कहलवाया कि या तो वह अपना रानी उसके हवाले कर दे, नहीं तो युद्ध के लिए तैयार हो जाये । शतानीक इस शर्त को स्वीकार करने के लिए कैसे तैयार हो सकता था ? प्रद्योत ने फिर कौशाम्बो को घेर लिया। इस समय दुर्भाग्य से अतिसार के कारण शतानीक को मृत्यु हो गयी। मृगावती की दीक्षा जब शतानोक को मृत्यु हुई तो उदयन बहुत छोटा था। इसलिए राजकाज को सारी जिम्मेवारो उसकी माँ रानी मृगावती के ऊपर आ पड़ो। इस समय राजा प्रद्योत ने फिर से अपनी माँग दुहराते हुए मृगावती को विवाह के लिए कहा। लेकिन मृगावती ने उत्तर दिया कि जब तक उदयन राजकाज सम्हालने के योग्य न हो जाये तब तक इस प्रस्ताव को स्थगित रखा जाये | उसने प्रद्योत से अनुरोध किया कि नगर की शत्रु से रक्षा करने के लिए किलेबन्दी आदि द्वारा उसे सुदृढ़ बनाया जाये। इस बीच में भगवान् महावीर का कौशाम्बी आगमन हुआ। मृगावती उनके दर्शनार्थ उपस्थित हुई और उसन उनके संघ में दीक्षित होने की अभिलाषा व्यक्त की। राजा प्रद्योत भो उस समय वहीं था। मृगावती ने दोक्षा के लिए प्रद्योत की १. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १५९-६३ । २. वही पृ८८ आदि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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