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________________ ५१८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज अनुमति चाहो, और वह मना न कर सका। मृगावती ने उदयन को प्रद्योत को सौंप दिया और प्रद्योत की अंगारवती आदि आठ रानियों के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। उदयन और वासवदत्ता एक बार की बात है कि राजा प्रद्योत का नलगिरि हाथी उन्मत्त हो उठा और वह काबू के बाहर हो गया । किसी ने सुझाया कि इसके लिए कौशाम्बी के राजा संगीतशास्त्र के वेत्ता उदयन को बुलाया जाये | प्रद्योत जानता था कि उदयन को हाथियों का बहुत शौक है, इसलिए उसने एक यंत्रमय हाथी के अन्दर अपने सिपाही बैठाकर उसे कौशाम्बी के पास जंगल में छुड़वा दिया । ज्याही उदयन ने हाथी को देखा, उसने गाना शुरू कर दिया। जब गाता गाता उदयन हाथी के पास पहुंचा तो झट से राजा के कर्मचारियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उदयन का प्रद्योत के पास लाया गया। प्रद्योत ने उसे राजकुमारो वासवदत्ता को संगीत को शिक्षा देने के लिए कहा। लेकिन उदयन को सावधान कर दिया गया कि वासवदत्ता एक आँख से कानो है इसलिए उसे वह देखने का प्रयत्न न करे । वासवदत्ता को भी अपने शिक्षक के कोढ़ी होने के कारण उसकी तरफ देखने की मनाही कर दो गयो। दोनों के बीच एक परदा ( यवनिका ) डाल दिया गया और परदे के पीछे से संगीत की शिक्षा दी जाने लगी । वासवदत्ता शिक्षक के कण्ठ से निकले हुए मधुर स्वर को सुनकर उसको ओर आकर्षित हुई और उसे साक्षात् देखने का अवसर खोजने लगी। एक दिन, उसने गाने को कुछ अशुद्ध पढ़ दिया, जिसे सुनकर उदयन क्रोध से चिल्ला उठा-“अरी कानी, तू इतना भी नहीं समझतो ?" वासवदत्ता ने उत्तर दिया-"अरे कोढी, क्या तू अपने आपको नहीं जानता ?" इतने में परदा हटा और दोनों की आँखें चार हुई। मालूम हुआ, न कोई काना है और न कोई कोढ़ी। __ एक दिन नलगिरि खंभा तुड़ाकर भाग गया। उदयन को उसे वश १. वही, पृ० ९१ आदि । २. वासवदत्ता अंगारवती की कन्या बतायी गयी है, आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६१ । भास के प्रतिज्ञायौगंधरायण और कथासरित्सागर के उल्लेखों से इसका समर्थन होता है । देखिए गुणे, प्रद्योत, उदयन एण्ड श्रेणिक-ए जैन लीजेण्ड, ऐनेल्स आव भांडारकर ओरिंटिएल इंस्टिट्यूट, १९२०-२१ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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