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परिशिष्ट २
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के पदचिह्न, उसकी मूत्र और लीद देखकर लोग समझ गये कि उज्जयिनी का राजा प्रद्योत रात में चुपचाप आकर दोनों को ले गया है । उद्रायण और प्रद्योत का युद्ध
उद्रायण ने प्रद्योत के पास दूत भेजकर कहलवाया कि मुझे दासी की चिन्ता नहीं, लेकिन प्रतिमा लौटा दो। लेकिन प्रद्योत ने सुनी अनसुनी कर दी । यह देखकर उद्रायण ने अपने दस सामन्त राजाओं को साथ ले उज्जयिनी पर चढ़ाई कर दो। दोनों ओर से घमासान युद्ध होने लगा | प्रद्योत हार गया और उद्रायण की जोत हुई । एक पट्ट पर 'दासोपति' लिखकर उसे प्रद्योत के मस्तक पर लगाया गया और प्रद्योत को बन्दी बनाकर वोतिभय ले आये । कुछ दिन बाद, पर्यूषण के अवसर पर उद्रायण ने प्रद्योत के अपराधों को क्षमाकर उसे छोड़ दिया । और अब उसका मस्तक सुवर्णपट्ट से विभूषित कर दिया गया | कहा जाता है कि इस समय से राजाओं के मस्तक को पट्ट से भूषित करने का रिवाज चल पड़ा, इससे पहले वे मुकुटबद्ध कहे जाते थे । "
चम्पा का राजा दधिवाहन
दधिवाहन अपनी रानी पद्मावती के साथ चम्पा में राज्य करता था। जब रानी गर्भवती हुई तो वह राजा के साथ हाथी पर सवार होकर वनक्रीडा के लिए गयी । लेकिन हाथी जंगल में भाग गया और राजा ने वृक्ष की शाखा पकड़कर किसी तरह अपनी जान बचायी । उधर रानी पद्मावती ने दन्तपुर पहुंच कर दीक्षा ग्रहण कर ली । कुछ समय बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम करकंडु रक्खा गया | बड़ा होकर करकंडु कांचनपुर के राजसिंहासन पर बैठा, और राजा दधिवाहन के साथ उसका युद्ध ठन गया। इस समय पद्मावती ने बीच-बचाव करके किसी तरह युद्ध रुकवाया । बाद में दधिवाहन ने अपना राज्य करकंडु को सौंपकर श्रमण दीक्षा ग्रहण की।
१. उत्तराध्ययनटोका १८, पृ० २५३ आदि; आदि । इस सम्बन्ध की अन्य परम्पराओं के लिए पृ० ६७, १२३, १६५ ।
२. आवश्यकचूर्णी २, पृ० २०५ आदि; उत्तराध्ययनटीका ९, पृ० १३२-अ ।
आवश्यकचूर्णी, पृ० ४०० देखिए रायचौधुरी, वही,