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५१४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज के नाम से विख्यात थे। श्रमण-धर्म में दीक्षित होने वाले मुकुटबद्ध राजाओं में वे अन्तिम राजा गिने गये हैं।' .. पुत्र के रहते हुए भो, अपने भानजे केशोकुमार को राजसिंहासन पर बैठाने के कारण अभोतिकुमार को अच्छा न लगा। रुष्ट होकर वह चम्पा के राजा कूणिक के पास चला गया और वहां रहने लगा। इस बीच में मौका पाकर केशो ने उद्रायण को दहो में विष मिलाकर दे दिया जिससे उसका प्राणान्त हो गया ।3
राजा उद्रायण एक कुशल योद्धा था और साथ ही अपनी आन का पक्का भी । उसके पास चन्दननिर्मित महावीर का एक सुन्दर प्रतिमा थी जिसकी देखभाल देवदत्ता नाम को एक कुबड़ो दासी किया करती थी। एक बार गंधार का कोई श्रावक प्रतिमा के दर्शन करने आया । वह देवदत्ता से बहुत प्रसन्न हुआ और उसने देवदत्ता को कुछ गोलियां दी जिनके खाने से वह रूपवती बन गयो । देवदत्ता ने उज्जयिनी के राजा प्रद्योत का नाम सुन रक्खा था। उसने प्रद्योत का नाम स्मरण कर एक और गोलो खा लो जिससे प्रद्योत अपने नल गरि हाथो पर सवार होकर फौरन ही उसे लेने आ गया। देवदत्ता अपने रूप के कारण अब सुवोंगुलिका कही जाने लगी। उसने प्रद्योत से चन्दन को प्रतिमा भी साथ ले चलने का कह।। सुबह होने पर उद्रायण को पता लगा कि न तो वहाँ देवदत्ता हो है और न प्रतिमा हो। नलगिरि
१. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १७१ आदि । २. व्याख्याप्रज्ञप्ति १३.६ ।।
३. आवश्यकचूर्णी २, पृ. ३६ । स्थानांगटोका, पृ. ४०८-अ; उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २५४-अ । तुलना कोजिए दिव्यावदान ( अध्याय ३७) के साथ । बौद्ध परम्परा के अनुसार, रुद्रायन रोरुक का राजा था। उसकी रानी का नाम चन्द्रप्रभा और पुत्र का नाम शिखण्डी था। कहते हैं कि राजा बिंविसार ने रुद्रायन के पास बुद्ध की एक प्रतिमा भिजवाई जिससे कि वह बौद्ध धर्म से परिचित हो सके । कुछ समय बाद चन्द्रप्रभा ने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली और उसकी मृत्यु हो गयी। रुद्रायन ने भी प्रव्रज्या ले ली। रुद्रायन के पश्चात् शिखण्डी राज्य का स्वामी बना । लेकिन उसके मंत्री उसे ठीक-ठीक मार्गदर्शन नहीं करते थे । यह जानकर रुद्रायन अपने पुत्र को सलाह देने के लिए उसके पास आया लेकिन षड्यत्र द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी। तथा देखिए मुनि जिनविजय का लेख, पुरातत्व १, पृ० २६८ आदि । .