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५१२ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज नौ मल्लकि और कोशल के नौ लिच्छवि राजा आ गये । दोनों ओर से घमासान युद्ध हुआ । काल, सुकाल आदि कुमार मारे गये। अन्त में वजीविदेहपुत्त कणिक की जय हुई तथा चेटक हार गया। चेटक अपने गले में लोहे को प्रतिमा लटका कुएँ में कूद पड़ा और वैशालीनिवासी नेपाल जाकर रहने लगे। हल्ल और विहल्ल ने महावीर के पास जैन दीक्षा ग्रहण कर ली ।
कहते हैं कि तिमिसगुहावासी किसी देव से आहत हो कूणिक की मृत्यु हो गयी और मर कर वह छठे नरक में गया ।
मन्त्री अभयकुमार ___ अभयकुमार राजा श्रेणिक का दूसरा पुत्र था। श्रेणिक का वह अत्यन्त विश्वासभाजन था, और प्रधान मन्त्री के पद पर वह नियुक्त था । उसकी बुद्धिमत्ता और प्रत्युत्पन्नमति की अनेक कथाएँ जैन आगम ग्रन्थों में मिलती हैं।..
श्रेणिक का अन्य परिवार श्रेणिक के कन्याएँ भी थीं। अपनी एक कन्या का विवाह उसने राजगृह के निवासी कृतपुण्य के पुत्र से किया था, जिसने मगरमच्छ से सेचनक हाथी की रक्षा की थी। श्रेणिक को सेना नाम की एक बहन का भी उल्लेख आता है। किसी विद्याधर के साथ उसका विवाह हुआ था। सेना ने कन्या को जन्म दिया, और उसकी मां की मृत्यु के बाद उसे श्रेणिक के पास भेज दिया गया। आगे चलकर मंत्री अभयकुमार के साथ उसका विवाह हुआ।
१. बौद्धों की मज्झिमनिकाय की अट्ठकथा में बताया है कि लिच्छवियों के पेट में जो कुछ जाता, वह आर-पार दिखायी देता था, जैसे कि कोई वस्तु माण के पात्र में रक्खी हो, अतः वे लोग निच्छवि (लिच्छवी = पारदर्शक ) कहे जाने लगे । ज्ञातृधर्मकथा के टीकाकार अभयदेव ने लिच्छवी का अर्थ 'लिप्सवः' ( वणिक ) किया है। दोनों ही व्युत्पत्तियां वास्तविकता से दूर हैं।
२. निरयावलि १; आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६४-७४; व्याख्याप्रज्ञप्ति ७.९; व्यवहारभाष्य १०.५३५ आदि । बौद्ध परम्परा में अजातशत्रु और लिच्छवियों के युद्ध के लिए देखिए दीघनिकाय, महापरिनिव्वाणसुत्त और उसकी अट्ठकथा |
३. आवश्यकचूर्णी, पृ० ४६८ ।
४. वही २, पृ० ४६८ । बौद्ध परम्परा के अनुसार सेनिय बिंबिसार ने ५२ वर्ष तक राज्य किया, महावंश २.३०; बी० सी० लाहा, सम ऐंशियेंट इडियन किंग्स, बुद्धिस्ट स्टडीज़, पृ० १८६ आदि ।