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परिशिष्ट २
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अपने किये हुए पर अत्यन्त संताप हुआ । वह परशु हाथ में लेकर अपने पिता के बंधन काटने के लिए चला । लेकिन श्रेणिक ने समझा कि वह उसे मारने आ रहा है। यह सोचकर, वह तालपुट विष खाकर मर गया । अपने पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर कूणिक को बहुत दुःख हुआ, और राजगृह छोड़कर वह चम्पा में आकर रहने लगा।
राजा कूणिक अब निश्चित होकर राज्य करने लगा था। लेकिन अपने सगे जुड़वां भाई हल्ल और विहल्ल की ओर से उसे अभी भी भय बना रहता था । बात यह थी कि राजा श्रणिक ने अपनी जीवत अवस्था में ही अपना सुप्रसिद्ध सेचनक गन्धहस्ति और अठारह लड़ी का कीमती हार हल्ल और विहल्ल को दे दिया था। विहल्लकुमार अपनी देवियों के साथ हाथी पर सवार हो गंगा पर जाता, वहां हाथो देवियों के साथ भांति-भांति की क्रोड़ाएँ कर उनका मनोरंजन करता । यह देखकर कूणिक की रानी पद्मावती को बहुत ईर्ष्या हुई और उसने सेचनक हाथी की मांग की। ___ एक दिन कूणिक ने विहल्ल को बुलाकर उससे हाथी और हार लौटाने को कहा। लेकिन इसके बदले बिहल्ल ने कूणिक से आध, राज्य मांगा। जब कूणिक ने राज्य देना स्वीकार न किया तो हल्ल और विहल्ल दोनों भाग कर अपने नाना चेटक के पास वैशाली चले गये । कूणिक ने दूत भेजकर उन्हें लौटाने के लिए कहलवाया, लेकिन कोई परिणाम नहीं हुआ। चेटक ने उत्तर दिया कि उसके लिये दोनों बराबर हैं, अतएव वह किसी का पक्षपात नहीं कर सकता। आखिर दोनों ओर से युद्ध ठन गया । कूणिक ने काल, सुकाल आदि दस कुमारों को साथ ले वैशाली को घेर लिया। उधर से काशी के
उसकी मां ने उसके बचपन की सारी बातें उसे सुनायौं, और उसे पितृद्रोही बताया, आवश्यकचूर्णी २, पृ० १७२ ।
१. निरयावलि १; आवश्यकचूर्णी २, पृ० १७१ । . २. कूणिक की अन्य रानियों में धारिणी और सुभद्रा आदि के नाम आते हैं, औपपातिक ७, पृ० २३, २३, पृ० १४४ |
३. एक दूसरी परम्परा के अनुसार चेल्लणा कूणिक के लिए गुड़ के, और इल्ल विहल्ल के लिए खांड़ के लड्डू भेजा करती थी जिससे कूणिक अपने भाइयों से ईर्ष्या करने लगा, वही, पृ० १६७ । ।