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________________ ३२ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज निकटता पर प्रकाश पड़ता है । मार्कण्डेय ने शौरसेनो के समीप होने से मागधी को हो अर्धमागधी बताया है। मतलब यह कि पश्चिम में शौरसेनी और पूर्व में मागधी के बीच के क्षेत्र में बोली जाने के कारण यह भाषा अर्धमागधी कही जाती थी, मागधो का शुद्ध रूप इसमें नहीं था। क्रमदीश्वर ने अपने संक्षितसार में इसे महाराष्ट्री और मागधी का मिश्रण बताया है। कहीं इसमें मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट, विदर्भ आदि देशी भाषाओं का संमिश्रण बताया गया है। इससे यही सिद्ध होता है कि आजकल की हिन्दुस्तानी की भाँति अर्धमागधी जन-सामान्य की भाषा थी जिसमें महावीर ने सर्वसाधारण को प्रवचन सुनाया था । शनैः शनैः इसमें अनेक देशी भाषाएँ मिश्रित होती गयीं और जैन श्रमणों के लिए देशी भाषाओं का ज्ञान अनिवार्य कर दिया गया। परिवर्तन और संशोधन महावीर के गणधरों द्वारा संकलित वर्तमान रूप में उपलब्ध आगमों की भाषा का यह रूप जैन श्रमणों के अथक प्रयत्नों से ही सुरक्षित रह सका। फिर भी, १००० वर्ष के दीर्घकालीन व्यवधान में आगमों के मूल पाठों में अनेक परिवर्तन और संशोधन होते रहे। आगमों के भाष्यकारों और टोकाकारों ने जगह-जगह इस परिवर्तन की ओर लक्ष्य किया है। सूत्रादर्शों में अनेक प्रकार के सूत्र उपलब्ध होने के कारण उन्होंने किसी एक आदर्श को स्वीकार कर लिया है. और फिर भी सूत्रों में विसंवाद रह जाने पर किसी वृद्ध सम्प्रदाय आदि का उल्लेख करते हुए अपनी अज्ञतासूचक दशा का प्रदर्शन किया है। सूत्रों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए कहीं पर उन्हें आमूल संशोधन और परिवर्तन करना पड़ा है। आगमों के टीकाकारों ने आगमों के वाचनाभेद के साथ-साथ उनके गलित हो जाने और उनको दुर्लक्ष्यता की १. इह च प्रायः सूत्रादर्शेषु नानाविधानि सूत्राणि दृश्यन्ते न च 'टीकासंवाद्यकोऽप्यस्माभिरादर्शः समुपलब्धोऽतः एकमादर्शमंगीकृत्यास्माभिर्विवरणं क्रियते, सूत्रकृतांगटीका, २ श्रुत, २, पृ० ३३५ अ । २. अशा वयं शास्त्रमिदं गभीरं, प्रायोऽस्य कूटानि च पुस्तकानि । अभयदेव, प्रश्नव्याकरणटीका, प्रस्तावना ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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