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________________ दूसरा अध्याय : जैन आगम और उनकी टीकाएँ ३१ तथा उपवास-प्रायश्चित आदि का वर्णन करने वाली अनेक परम्पराओं, जनश्रुतियों, लोक-कथाओं और धर्मोपदेश की पद्धतियों का वर्णन है । महावीर भगवान् का जन्म, उनकी कठोर साधना, साधु-जीवन, उनके मूल उपदेश, उनकी विहार चर्या, शिष्य-परम्परा, आर्य-क्षेत्रों की सीमा, तत्कालीन राजे-महाराजे, अन्य तीर्थिक तथा मतमतान्तर और उनकी त्रिवेचना सम्बन्धी जानकारी हमें यहाँ मिलती है । वास्तुशास्त्र, वैशिकशास्त्र, ज्योतिषविद्या, भूगोल-खगोल, संगीत, नाट्य, विविध कलाएँ, प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान आदि अनेकानेक विषयों का यहाँ विवेचन किया गया है । इन सब विषयों के अध्ययन से तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है जिससे हमारे प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास की अनेक त्रुटित शृङ्खलाएँ जा सकती हैं । आगमों की भाषा भाषाशास्त्र की दृष्टि से भी आगम- साहित्य अत्यन्त उपयोगी है । जैन सूत्रों के अनुसार महावीर भगवान् ने अर्धमागधी में अपना उपदेश दिया, और इस उपदेश के आधार पर उनके गणधरों ने आगमों की रचना की । परम्परा के अनुसार बौद्धों की मागधी की भाँति अर्धमागधी भी आर्य, अनार्य, और पशु-पक्षियों द्वारा समझी जा सकती थी, तथा बाल, वृद्ध, स्त्री और अनपढ़ लोगों को यह बोधगम्य थी । " आचार्य हेमचन्द्र ने इसे आर्षप्राकृत कहकर व्याकरण के नियमों से बाह्य बताया है । त्रिविक्रम ने भी अपने प्राकृतशब्दानुशासन में देश्य भाषाओं की भाँति आर्षप्राकृत की स्वतन्त्र उत्पत्ति मानते हुए उसके लिए व्याकरण के नियमों की आवश्यकता नहीं बतायी। मतलब यह कि आर्ष भाषा का आधार संस्कृत न होने से वह अपने स्वतन्त्र नियमों का पालन करती है । इसे प्राचीन प्राकृत भी कहा है । साधारणतया मगध के आधे हिस्से में बोली जाने वाली भाषा को अर्धमागधी कहा गया है । अभयदेवसूरि के अनुसार, इस भाषा में कुछ लक्षण मागधी के और कुछ प्राकृत के पाये जाते हैं, अतएव इसे अर्धमागधी कहा है। इससे मागधी और अर्धमागधी भाषाओं की १. जैसे पात्रविशेष के आधार से वर्षा के जल में परिवर्तन हो जाता है, वैसे ही जिन भगवान् की भाषा भी पात्रों के अनुरूप होती जाती है । वृहत्कल्पभाष्य १. १२०४ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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