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________________ परिशिष्ट २ . ५०७ राजा श्रेणिक की तेईस रानियों के नाम मिलते हैं। कहते हैं कि श्रेणिक में युवराज के समस्त गुण मौजूद थे, फिर भी उसका पिता उसे राजपद नहीं देता था। यह देखकर श्रेणिक को चिन्ता हुई और वह भागकर वेन्यातट चला गया । यहाँ उसने किसो वणिक की कन्या नन्दा से विवाह कर लिया। कुछ समय बाद नंदा (अथवा सुनंदा) गर्भवती हुई और श्रेणिक राजगृह लौट गया। बाद में नंदा का पिता अपनी कन्या को लेकर राजगृह आया और यहां नंदा ने अभयकुमार को जन्म दिया। आगे चलकर यहो अभयकुमार श्रेणिक का एक सलाहकार प्रिय मंत्री बना । धारिणी राजा श्रेणिक की दूसरी रानी थी, उसके गर्भ से मेघकुमार का जन्म हुआ। अभयकुमार मेघकुमार के जन्म के समय मौजूद थे। इसका विस्तृत वर्णन ज्ञातृधर्मकथा के प्रथम अध्ययन में आता है । चेल्लणा श्रेणिक को तीसरी रानी थी। वह वैशाली के गणराजा चेटक की सबसे छोटो कन्या थी। अभयकुमार को सहायता से श्रेणिक उसे चुपचाप वैशाली से अपहृत करके लाया था। अपगतगंधा १. नदा, नंदमई, नंदुत्तरा, नंदसेणिया, मरुया, सुमरुया, महमरुया, मरुदेवा, भद्दा, सुभद्दा, सुजाता, सुमणाइया, भूयदिन्ना, काली, सुकाली, महाकाली, कण्हा, सुकण्हा, महाकण्हा, वीरकण्हा, रामकण्हा, पिउसेणकण्हा और महासेणकण्हा, अन्तःकृद्दशा ७, पृ० ४३ । २. आवश्यकचूर्णी, पृ० ५४६; हरिभद्र, आवश्यकटीका पृ० ४१७-अ । मूलसर्वास्तिवाद जिल्द ३, भाग २, पृ० २० आदि के अनुसार अभयकुमार राजा बिंबिसार और अंबापालि का अवैध पुत्र था। दूसरी परम्परा के अनुसार, अभयकुमार उज्जयिनी की गगिका पद्मावती का पुत्र था, थेरीगाथा की अटकथा, पृ० ३१-४१ । मज्झिमनिकाय के अभयराजकुमारसुत्रांत के अनुसार, वह महावीर का शिष्य था, लेकिन बाद में वह बौद्धधर्म का अनुयायी बन गया था । ३. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६५ आदि । चेल्लणा वैदेही भी कही गयी है। उसकी बड़ी बहन का नाम सुज्येष्ठा था । बौद्ध परम्परा में उन्हें क्रमशः चेला और उपचेला कहा गया है। दोनों लिच्छवियों के सेनापति सिंह की कन्याएं और बिबिसार के मन्त्री गोप की भतीजियां थीं, देखिए मूलसर्वास्तिवाद का विनयवस्तु, पृ० १२ आदि । पालि साहित्य में कोसलादेवी ( जातक ३, २८३, पृ० १२३ ) ओर खेमा ( अंगुत्तरनिकाय की अट्ठकथा मनोरथपूरणी १, पृ० ३४२ ) को राजा श्रेणिक की रानियां बताया है। कोसलादेवी अजातशत्रु की माता थी।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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