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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
सम्मिलित हो समारोह की शोभा बढ़ाई। पंडुराजा का विवाह अंधकवृष्णि की कन्या कुंती और दमघोष का विवाह माद्री से हुआ था। कौडिन्य के राजा भीष्मक की कन्या शिशुपाल को दो गयी थी, लेकिन कृष्ण ने उसका अपहरण कर उसे अपनी महिषी बना लिया । " महावीर के समकालीन राजा-महाराजा राजा श्रेणिक
श्रेणिक को सेनिय, भंभसार अथवा भिभिसार भो कहा गया है। कहते हैं कि राजा प्रसेनजित् के काल में कुशायपुर में प्राय: आग लग जाया करती थी । एक बार राजा के रसोइये की असावधानी के कारण राजमहल में आग लग गयी। आग के उपद्रव से भयभीत हो सब राजकुमार महल छोड़कर भागे। जल्दी-जल्दी में कोई हाथी, कोई घोड़ा और कोई मणिमुक्ता लेकर भागा, लेकिन श्रेणिक के हाथ एक संभा ( एक वाद्य) आई और वे उसे ही लेकर चलते बने। राजा प्रसेनजित् " के पूछने पर उन्होंने उत्तर दिया कि वह विजय का चिह्न है । तब से श्रेणिक बिंबसार के नाम से कहे जाने लगे । जैन परम्परा में श्रेणिक को भगवान् महावीर का भक्त कहा गया है। महावीर से पूछे हुए उनके कितने हो प्रश्नों के उत्तर जैन आगमों में सुरक्षित हैं। उन्हें राजसिंह (रायसीह ) कहा गया है, " वाहिय कुल में उन्होंने जन्म लिया था । "
१. ज्ञातृधर्मकथा १६ । बौद्ध परम्परा के लिए देखिए कुणालजातक ( ५३६ ) ।
२. शातृधर्मकथा, वही ।
३. सूत्रकृतांग ३.१, पृ० ७९ ।
४. ज्ञातृधर्मकथा १६, पृ० १७८; प्रश्नव्याकरणटीका ४, पृ० ८७ अ ।
५. बौद्धधर्म के अनुसार, वह कोसल का राजा था और मगध सम्राट्
बिसार का पड़ोसी था, मज्झिमनिकाय, अंगुलिमालसुत्तंत ।
६. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १५८ । उदान की टीका परमत्थदीपनी पृ० १०४ के अनुसार श्रेणिक के पास बहुत बड़ी सेना थी, अथवा वह सेनिय गोत्र का था, इसलिए सेनिय कहा जाता था । बिंचि ( सुनहरा ) वर्ण का होने के कारण उसका नाम बिंबिसार पड़ा ।
७. उत्तराध्ययनसूत्र २०.५८ ।
८. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६५ ।