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'परिशिष्ट २
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पज्जुन्न, निसढ, सुय, सारण, संब आदि यादव कुमारों तथा रुक्मिणी और अन्य कुमारियों ने दोक्षा ग्रहण को ।
द्वीपायन ऋषि मरकर अग्निकुमार देवों में उत्पन्न हुए | उन्होंने द्वारका को जलाना आरम्भ कर दिया। देखते-देखते नगरी प्रज्वलित हो उठो। कृष्ण वासुदेव और बलदेव अपने माता-पिता को लेने पहुँचे । उन्होंने उन दोनों को रथ पर बैठा लिया, लेकिन वे स्वयं जलने लगे। इस बीच में बलदेव के प्राणप्रिय चरम देहधारो कुजवारअ को देवतागण पह्नव देश में लिवा ले गये। द्वारका छह मास तक जलतो रहो । कृष्ण वासुदेव और बलदेव ने पाण्डवों के पास दक्षिण समुद्र के किनारे पर स्थित पांडु मथुरा जाने का इरादा किया। दोनों सौराष्ट्र होते हुए हथिकप्प (हाथब, भावनगर के पास ) नगर के बाहर आये | इस समय कृष्ण को बहुत जोर की प्यास लगी। बलदेव अपने भाई के लिए जल लेने गये । कृष्ण कौशेय वस्त्र ओढ़ कर सो गये। इस बीच में भ्रमण करते हुए जराकुमार वहां आ पहुँचे । उन्होंने हरिण समझ कर सोते हुए कृष्ण के ऊपर बाण चला दिया जो उनके मर्म-स्थान में जाकर लगा। कृष्ण के वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि देखकर जराकुमार को अत्यन्त दुःख आ। उन्होंने अपने अपराध को क्षमा मांगो। लेकिन अब क्या हो सकता था ? इस बीच में बलदेव भी जल लेकर लौटे | अपने प्रिय भ्राता के मृत शरीर को कंधे पर उठाये वे बहुत दिनों तक फिरते रहे । अन्त में बलदेव तुंगिया पवत पर पहुंचकर तप में लीन हो गये। कृष्ण को मृत्यु का समाचार सुनकर पांडवां को अत्यन्त दुःख हुआ। जराकुमार को अपना राज्य सौंप कर उन्होंने श्रमण दोक्षा ग्रहण की।' ___ राजा द्रुपद कांपिल्यपुर में राज्य करते थे। अपनी कन्या द्रौपदी के स्वयंबर के समय उन्होंने दूर-दूर के राजा-महाराजाओं को आमन्त्रित किया । द्वारका से कृष्ण वासुदेव, बलदेव, उग्रसेन आदि, हस्तिनापुर से पांच पाण्डवों समेत पंडु राजा, शुक्तिमतो के राजा दमघोष और उनके पुत्र शिशुषाल, हस्तिशीष के राजा दमदंत, राजगृह के राजा जरासंध के पुत्र सहदेव तथा कौडिन्य के राजा भोष्मक के पुत्र रुक्मी आदि अनेक राजा-महाराजाओं ने स्वयंवर में
१. अन्तःकृद्दशा पृ० २७-९; उत्तराध्ययनटीका पृ० ३९ ।