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________________ ५०४ . जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज हैं और आप वासुदेव, अतएव दोनों में युद्ध को संभावना नहीं है लेकिन कृष्ण ने इसे स्वीकार न किया । फलस्वरूप दोनों में बाहुयद्ध हुआ जिसमें कृष्ण को हार माननी पड़ी। - आगे चलकर अरिष्टनेमि ने श्रमण दोक्षा ग्रहण की और साधुअवस्था में वे विचरण करने लगे। एक बार जनपद विहार करते हुए अरिष्टनेमि द्वारका पधारे। कृष्ण वासुदेव अपने परिवार सहित उनके दर्शन के लिए गये। उन्होंने प्रश्न किया-"भगवन् , मरकर मैं कहां उत्पन्न होऊँगा ?" अरिष्टनेमि ने उत्तर दिया- "सुरा, अग्नि और द्वीपानय ऋषि के कोप से द्वारका का नाश होगा। तत्पश्चात् माता-पिता और सगे-सम्बन्धियों से रहित बलदेव के साथ, युधिष्ठिर आदि पांच पाण्डवों के पांडुमथुरा चले जाने पर, तुम कोशाम्र वन में, न्यग्रोध वृक्ष के नीचे, एक शिलापट्ट पर पीत वस्त्र पहने हुए, जराकुमार के तीक्ष्ण बाण से घायल होकर तीसरे नरक जाओगे। वहां से आगामी उत्सर्पिणी काल में, पुण्ड्र जनपद में अमम नाम के बारहवें तीर्थंकर होकर निर्वाण प्राप्त करोगे।" भविष्यवाणी सुनकर कृष्ण वासुदेव को बहुत चिंता हुई। जराकुमार के ऊपर यादव नजर रखने लगे और वे वनवास को चले गये । कृष्ण ने द्वारका में प्रवेश करते हो नगरी में घोषणा करा दो कि सुरा को कादम्ब वन में फेंक दी जाये। राजकर्मचारियों ने फौरन ही आज्ञा का पालन किया । कदम्ब वन में पड़े रहने के कारण यह सुरा कादम्बरी नाम से कहो जाने लगो और छह मास में पककर स्वादिष्ट बन गयी। इस सुरा का संब आदि कुमारों ने पान किया और उसके मद से उन्मत्त हो उन्होंने तपश्चरण में लीन द्वीपायन ऋषि की खूब मरम्मत को। यह समाचार जब कृष्ण वासुदेव के पहुँचा तो बलदेव को लेकर वे ऋषि को मनाने के लिए पहुँचे। लेकिन ऋषि क्रोध से सन्तप्त हो उठे थे। उन्होंने कहा-'तुम दोनों को छोड़कर द्वारका को जला डालने को मैंने प्रतिज्ञा को है, अब उसे कोई नहीं रोक सकता।" द्वीपायन ऋषि का उपद्रव आरम्भ हो गया। कृष्ण ने प्रजा से तप, उपवास आदि में संलग्न रहने का अनुरोध किया और घोषणा करा दी कि जो कोई जिन-दीक्षा लेना चाहता हो, उसके कुटुम्ब आदि का पालन-पोषण, राज्य की ओर से किया जायगा। इस समय १. उत्तराध्ययनटीका २२, पृ० २७८-अ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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